सात सौ बीस तीर्थंकर विधान
सात सौ बीस तीर्थंकर विधान 01. सात सौ बीस तीर्थंकर विधान
सात सौ बीस तीर्थंकर विधान (लघु) तीस चौबीसी तीर्थंकर वंदना अनुष्टुप-छंद सिद्धिं प्राप्ताश्च प्राप्स्यंति, भूता सन्तश्च भाविनः। भरतैरावतोद्भूतास्तीर्थंकरा अवंतु मां।।१।। जंबूद्वीपेऽत्र विख्याते, मध्यलोकस्य मध्यगे। भरतो दक्षिणे भागे, उदीच्यैरावतो मतः।।२।। पूर्वस्मिन् धातकीद्वीपेऽपरधात्र्यामपि त्विमौ। भरतैरावतौ द्वौ द्वौ, दक्षिणोत्तर भागिनौ।।३।। पूर्वार्धपुष्करेप्येवं, पश्चिमार्धे तथेदृशौ। भरतैरावते क्षेत्रे, अपागुदग्दिगोश्च ते।।४।। पंच भरतक्षेत्राणि, पंचैवैरावतान्यपि। दशैषामार्यखंडेषु, षट्कालपरिवर्तनं।।५।। चतुर्थेऽप्यागते काले चतुर्विंशतयो जिनाः। तीर्थेश्वराः भवंतीह,…
श्री सरस्वती विधान 01. श्री सरस्वती विधान (सरस्वती स्तोत्र) 02. श्री सरस्वती विधान
श्री सरस्वती विधान शंभु छंद तीर्थंकर के मुख से खिरती, अनअक्षर दिव्यध्वनी भाषा। बारह कोठों में सबके हित, परिणमती सर्वजगत् भाषा।। गणधर गुरु जिन ध्वनि को सुनकर, बारह अंगों में रचते हैं। हम दिव्यध्वनी का आह्वानन, करके भक्ती से यजते हैं।।१।। ॐ ह्रीं तीर्थंकरमुखकमलविनिर्गतद्वादशांगमयीसरस्वतीमातः! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
श्री सरस्वती विधान (सरस्वती स्तोत्र) बारह अंगंगिज्जा, दंसणतिलया चरित्तवत्थहरा। चोद्दसपुव्वाहरणा, ठावे दव्वाय सुयदेवी।।१।। आचारशिरसं सूत्र-कृतवक्त्रां सुकंठिकाम्। स्थानेन समवायांग-व्याख्याप्रज्ञप्तिदोर्लताम् ।।२।। वाग्देवतां ज्ञातृकथो-पासकाध्ययनस्तनीम्। अंतकृद्दशसन्नाभि-मनुत्तरदशांगतः ।।३।। सुनितंबां सुजघनां, प्रश्नव्याकरणश्रुतात्। विपाकसूत्रदृग्वाद-चरणां चरणांबराम् ।।४।। सम्यक्त्वतिलकां पूर्व-चतुर्दशविभूषणाम्। तावत्प्रकीर्णकोदीर्ण-चारुपत्रांकुरश्रियम्।।५।। आप्तदृष्टप्रवाहौघ-द्रव्यभावाधिदेवताम् । परब्रह्मपथादृप्तां, स्यादुक्तिं भुक्तिमुक्तिदाम् ।।६।।…
त्रिकाल चौबीसी विधान 01. तीन चौबीसी पूजा (समुच्चय) 02. जंबूद्वीप भरतक्षेत्र भूतकाल तीर्थंकर पूजा 03. जंबूद्वीप भरतक्षेत्र वर्तमान तीर्थंकर पूजा 04.जंबूद्वीप भरतक्षेत्र भविष्यत्कालीन तीर्थंकर पूजा
जंबूद्वीप भरतक्षेत्र भविष्यत्कालीन तीर्थंकर पूजा स्थापना-गीताछंद इस भरत क्षेत्र विषे जिनेश्वर, भविष्यत् में होएंगे। उनके निकट में भव्य अगणित कर्मपंकिल धोएंगे।। चौबीस तीर्थंकर सतत वे, विश्व में मंगल करें। मैं पूजहूँ आह्वान कर, मुझ सर्वसंकट परिहरें।।१।। ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधिभरतक्षेत्रस्थभविष्यत्कालीनचतुर्विंशतितीर्थंकर समूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
जंबूद्वीप भरतक्षेत्र वर्तमान तीर्थंकर पूजा अथ स्थापना-गीता छंद वृषभादि चौबिस तीर्थंकर इस भरत के विख्यात हैं। जो प्रथित जंबूद्वीप के संंप्रति जिनेश्वर ख्यात हैं।। इन तीर्थंकर के तीर्थ में सम्यक्त्व निधि को पायके। थापूँ यहाँ पूजन निमित अति चित्त में हरषाय के।।१।। ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधिभरतक्षेत्रस्थवर्तमानकालीनचतुर्विंशतितीर्थंकरसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
जंबूद्वीप भरतक्षेत्र भूतकाल तीर्थंकर पूजा स्थापना-गीता छंद जंबूद्रुमांकित प्रथम जंबूद्वीप में दक्षिण दिशी। वर भरत क्षेत्र प्रधान तहं षट्काल वर्ते नितप्रती।। जहं भूतकाल चतुर्थ में चौबीस तीर्थंकर भये। थापूँ यहाँ वर भक्ति पूजन हेतु मन हर्षित भये।।१।। ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि भरतक्षेत्रस्थ भूतकालीन चतुर्विंशतितीर्थंकरसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
त्रिकाल चौबीसी विधान तीन चौबीसी पूजा (समुच्चय) स्थापना-गीता छंद मंगलमयी सब लोक में, उत्तम शरण दाता तुम्हीं। वर तीन चौबीसी जिनेश्वर, तीर्थकर्ता मान्य ही।। इस भरत में ये भूत संप्रति, भावि तीर्थंकर कहे। आह्वान करके जो जजें, वे स्वात्मसुख संपति लहें।।१।। ॐ ह्रीं भूतवर्तमानभविष्यत्-द्वासप्ततितीर्थंकरसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …