10. वैय्यावृत्त्य भावना पूजा
(पूजा नं.-10) वैय्यावृत्त्य भावना पूजा -स्थापना- तर्ज-ऊँचे-ऊँचे शिखरों वाला है…… सोलहकारण भावन में, नवमी भावना…
(पूजा नं.-10) वैय्यावृत्त्य भावना पूजा -स्थापना- तर्ज-ऊँचे-ऊँचे शिखरों वाला है…… सोलहकारण भावन में, नवमी भावना…
(पूजा नं.-9) साधुसमाधि भावना पूजा -स्थापना (सोरठा)- मुनियों को सुखकार, साधु समाधी भावना। पूजन हेतू आज, करूँ उसी की थापना।।१।। ॐ ह्रीं साधुसमाधिभावना! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं साधुसमाधिभावना! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं। ॐ ह्रीं…
(पूजा नं.-8) शक्तितस्तपो भावना पूजा -स्थापना-दोहा- सोलहकारण भावना, भाते जो चित लाय। तीर्थंकर पद प्राप्ति का, करते वही उपाय।।१।। उसमें सप्तम भावना, तप संज्ञा से प्रसिद्ध। जिसको भाकर योगिजन, पाते हैं पद सिद्ध।।२।। उसकी पूजन हेतु मैं, करूँ यहाँ आह्वान। संस्थापन सन्निधिकरण, कर मैं बनूँ महान।।३।। ॐ ह्रीं शक्तितस्तपो भावना! अत्र अवतर अवतर संवौषट्…
(पूजा नं. 7) शक्तितस्त्यागभावना पूजा -स्थापना (सोरठा छंद)- शक्ति के अनुसार, त्याग भावना भायके। जिनपूजन सुखकार, करूँ थापना आयके।।१।। ॐ ह्रीं शक्तितस्त्यागभावना! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं शक्तितस्त्यागभावना! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं। ॐ ह्रीं…
(पूजा नं.-6) संवेगभावना पूजा -स्थापना- तर्ज-श्रीपति जिनवर करुणायतनं…… हे नाथ! तुम्हारी पूजन का, शुभ भाव हृदय में आया है। जग के दु:खों से घबराकर, यह भक्त तेरे ढिग आया है।।टेक.।। सोलहकारण की एक-एक,…
(पूजा नं.-5) अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग भावना पूजा -स्थापना-दोहा- सम्यक् ज्ञानाभ्यास में, नित्य रहें जो लीन। वे मुनि अपने ध्यान से, करें कर्म को क्षीण।।१।। ज्ञान तथा ज्ञानी पुरुष, हैं त्रिलोक में पूज्य। वही ज्ञान मुझको मिले, बन जाऊँ जगपूज्य।।२।। सोलहकारण भावना, में चतुर्थ का नाम। …
(पूजा नं.-4) शीलव्रतेष्वनतिचार भावना पूजा -स्थापना-गीता छंद – सोलह सुकारण भावना में, है तृतिय जो भावना। शील अरु व्रत में नहीं, अतिचार हों यह कामना।। इस भावना की अर्चना में मैं करूँ आह्वानना। मन में बिठाऊँ भावना कर पुष्प से स्थापना।।१।। ॐ ह्रीं शीलव्रतेष्वनतिचार भावना! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
(पूजा नं.-3) विनयसम्पन्नता भावना पूजा -स्थापना (अडिल्ल छंद)- सोलहकारण में द्वितीय है भावना। कही विनयसम्पन्नता है भावना।। उसकी पूजन हेतु करूँ स्थापना। भाव यही है विनयभाव मन धारना।।१।। ॐ ह्रीं विनयसम्पन्नता भावना! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं विनयसम्पन्नता भावना! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं। …
(पूजा नं.-2) दर्शनविशुद्धि भावना पूजा -स्थापना (अडिल्ल छंद)- सोलहकारण में है पहली भावना। करना है दर्शनविशुद्धि की कामना।। आत्मा में सम्यक्त्व विशुद्धि बढ़ाइये। आह्वानन कर पुष्पांजलि चढ़ाइये।।१।। ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्धिभावना! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्धिभावना! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं। …
सोलहकारण पूजा (समुच्चय पूजा) तर्ज-अब ना छुपाऊँगा………. दर्शनविशुद्धि हो, आतम की शुद्धि हो, आगे तीर्थंकर बनके, इस…