श्री वासुपूज्य विधान
श्री वासुपूज्य विधान 01. मंगलाचरण 02. श्री अर्हंत पूजा 03. श्रीवासुपूज्य जिनपूजा
श्री वासुपूज्य विधान 01. मंगलाचरण 02. श्री अर्हंत पूजा 03. श्रीवासुपूज्य जिनपूजा
पूजा नं. 2 श्रीवासुपूज्य जिनपूजा अथ स्थापना-गीता छंद श्रीवासुपूज्य जिनेन्द्र वासव-गणों से पूजित सदा। इक्ष्वाकुवंश दिनेश काश्यप-गोत्र पुंगव शर्मदा।। सप्तर्द्धिभूषित गणधरों से, पूज्य त्रिभुवन वंद्य हैं। आह्वान कर पूजूँ यहाँ, मिट जाएगा भव फंद है।।१।। -गीता छंद- वासुपूज्य तीर्थेश प्रभु, बालयती जगवंद्य। नमूं नमूं नित भक्ति से, पाऊं परमानंद।।२।। ॐ ह्रीं श्रीवासुपूज्यतीर्थंकर! अत्र…
पूजा नं. 1 श्री अर्हंत पूजा स्थापना—गीता छंद अरिहंत प्रभु ने घातिया को घात निज सुख पा लिया। छ्यालीस गुण के नाथ अठरह दोष का सब क्षय किया।। शत इंद्र नित पूजें उन्हें गणधर मुनी वंदन करें। हम भी प्रभो! तुम अर्चना के हेतु अभिनन्दन करें।।१।। ॐ ह्रीं अर्हन् नम: हे अर्हत्परमेष्ठिन्! अत्र अवतर अवतर…
श्री वासुपूज्य विधान मंगलाचरण -उपेंद्रवङ्काा छंद- देवेंद्रवृंदैर्नरनाथमुख्यै:, मुनीश्वरै: सर्वगणाधिपैश्च। सदा प्रपूज्यो भुवनेषु पूज्य: त्वां वासुपूज्यं प्रणमामि भक्त्या।।१।। -शंभु छंद- आत्मा औ तनु के अन्तर को, कर तनु से निर्मम हो जाऊँ। मैं शुद्ध बुद्ध परमात्मा हूँ, यह समझ स्वयं में रम जाऊँ।। इंद्रिय बल आयु श्वास चार, प्राणों को धर—धर मरता हूँ। निश्चय नय से…
कर्मदहन विधान 01. मंगलाचरण 02. श्री कर्मदहन पूजा 03. सिद्धों के आठ गुणों की पूजा
सिद्धों के आठ गुणों की पूजा -अथ स्थापना (तर्ज-तुमसे लागी लगन……)- नाथ! त्रिभुवनपती, पाई पंचमगती, इन्द्र आये। भक्ति से आपको शिर झुकायें।। …
श्री कर्मदहन पूजा -अथ स्थापना (शंभु छंद)- हे सिद्ध प्रभो! तुम आठ कर्म, विरहित गुण आठ समन्वित हो। अष्टमि पृथिवी पर तिष्ठ रहे, ज्ञानाम्बुधि सिद्धरमापति हो।। समतारस आस्वादी मुनिगण, नित सिद्ध गुणों को ध्याते हैं। हम पूजें तुम आह्वानन कर, जिससे सब कर्म नशाते हैं।। ॐ ह्रीं सर्वकर्मविनिर्मुक्त-श्रीसिद्धपरमेष्ठिसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
श्री कर्मदहन विधान मंगलाचरण -शेर छंद- सिद्धों को नमूँ हाथ जोड़ शीश नमा के। ये सिद्धि सौख्य दे रहे हैं पाप नशाके।। अर्हंतदेव को नमूँ ये मुक्ति के नेता। आचार्य उपाध्याय साधु धर्म प्रणेता।।१।। ये साधु कर्म नाशने में बद्ध कक्ष हैं। अर्हंतदेव चार घातिकर्म मुक्त हैं।। सिद्धों ने सर्व कर्म को निर्मूल कर दिया।…
कालसर्पहर श्री पार्श्वनाथ विधान 01. मंगलाचरण 02. श्री कलिकुंड पूजा 03. श्री पार्श्वनाथ जिनपूजा
पूजा नं. 2 श्री पार्श्वनाथ जिनपूजा अथ स्थापना—शंभु छंद (तर्ज—यह नंदनवन….) श्री पार्श्व प्रभू, त्रिभुवन के विभू, हम पूजा करने आये हैं। निज आत्म सुधारस मिल जावे, यह आशा लेकर आये हैं।।टेक।। आह्वानन संस्थापन करके, सन्निधीकरण विधि करते हैं। निज हृदय कमल में धारण कर, अज्ञान तिमिर को हरते हैं।। कमठारिजयी प्रभु क्षमाशील, की अर्चा…