05. सर्वसाधु पूजा
पूजा नं.-4 सर्वसाधु पूजा —अथ स्थापना-गीता छंद— जो साधु तीर्थंकर समवसृति में सदा ही तिष्ठते। वे सात भेदों में रहें निज मुक्तिकांता प्रीति तें।। ऋषि पूर्वधर शिक्षक अवधिज्ञानी प्रभू केवलि वहां। विक्रियाधारी विपुलमतिवादी उन्हें पूजूँ यहाँ।। ॐ ह्रीं अर्हं श्रीऋषभदेवसमवसरणस्थितसर्वऋषिसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …