04. श्री महर्षि पूजा
पूजा नं.—2 श्री महर्षि पूजा समवसरणस्थित ऋषिगण पूजा —अथ स्थापना-गीता छंद— जो महर्षि तीर्थेश समवसृति में सदा ही तिष्ठते। वे सात भेदों में र हें निज मुक्तिकांता प्रीति तें।। केवलि विपुलमति, अवधिज्ञानी, पूर्वधर ऋषिवर वहां। विक्रियधरा, शिक्षक व वादी मैं उन्हें पूजूं यहां।। ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरसमवसरणस्थितसर्वऋषिसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …