07. बड़ी जयमाला
बड़ी जयमाला -दोहा- अति अद्भुत लक्ष्मी धरें, समवसरण प्रभु आप। तुम धुनि सुन भविवृन्द नित, हरें सकल संताप।।१।। -शंभु छंद- जय जय त्रिभुवनपति का वैभव, अन्तर का अनुपम गुणमय है। जो दर्श ज्ञान सुख वीर्यरूप, आनन्त्य चतुष्टय निधिमय है।। बाहर का वैभव समवसरण, जिसमें असंख्य रचना मानीं। जब गणधर भी वर्णन करते, थक जाते मनपर्यय…