07. समुच्चय जयमाला
समुच्चय जयमाला तर्ज-चाँद मेरे आ जा रे……… करें रत्नत्रय का…
सम्यक्चारित्र पूजा -स्थापना (शंभु छंद)- आत्मा की सब सावद्ययोग से, जब विरक्ति हो जाती है। वह त्याग की श्रेणी ही सम्यक्चारित्ररूप हो जाती है।। वह पंच महाव्रत पंचसमिति, त्रयगुप्ति सहित कहलाता है। तेरह प्रकार का यह चारित, शिवपद को प्राप्त कराता है।।१।। -दोहा- आह्वानन स्थापना, सन्निधिकरण महान। पूजन हेतू मैं यहाँ, आया हूँ भगवान।। ॐ…
सम्यग्ज्ञान पूजा -स्थापना- तर्ज-जपूँ मैं जिनवर जिनवर……….. ज्ञान की ज्योति जलाऊँ, ज्ञान में ही रम जाऊँ, ज्ञान का ही फल आतमनिधि को मैं पाऊँ, हे प्रभु पाऊँ, ज्ञान को पाऊँ।।ज्ञान की…
सम्यग्दर्शन पूजा -स्थापना- जैसे जड़ के बिना वृक्ष नहिं, टिक सकता है पृथिवी पर। नहीं नींव के बिना बना, सकता कोई मंजिल सुन्दर।। वैसे ही सम्यग्दर्शन बिन, रत्नत्रय नहिं बन सकता। यदि मिल जावे सम्यग्दर्शन, तब ही मुक्तीपथ बनता।।१।। -दोहा- सम्यग्दर्शन रत्न का, स्थापन आह्वान। पूजन से पहले करूँ, सन्निधिकरण महान।।२।। ॐ ह्रीं अष्टांग सम्यग्दर्शन!…
रत्नत्रय पूजा (समुच्चय पूजा) -स्थापना (अडिल्ल छंद)- सम्यग्दर्शन ज्ञान चरित की साधना। कहलाती है रत्नत्रय आराधना।। इस रत्नत्रय को ही शिवपथ जानना। करूँ उसी रत्नत्रय की स्थापना।।१।। दोहा- आह्वानन स्थापना, सन्निधिकरण महान। रत्नत्रय पूजन करूँ, जिनमंदिर में आन।।२।। ॐ ह्रीं सम्यक्रत्नत्रयधर्म! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं सम्यक्रत्नत्रयधर्म! अत्र तिष्ठ तिष्ठ…
रत्नत्रय वंदना -शंभु छंद- जिनने रत्नत्रय धारण कर, परमेष्ठी का पद प्राप्त किया। अर्हंत-सिद्ध-आचार्य-उपाध्याय, साधु का पद स्वीकार किया।। इन पाँचों परमेष्ठी के, श्रीचरणों में मेरा वंदन है। रत्नत्रय की प्राप्ती हेतू, रत्नत्रय को भी वंदन है।।१।। रत्नत्रय के धारक श्री चारितचक्रवर्ती गुरु को वंदन। बीसवीं सदी के प्रथम सूर्य, आचार्य शांतिसागर को नमन।। श्री…
मंगलाचरण -शार्दूलविक्रीडित छंद- सिद्धेर्धाममहारिमोहहननं, कीर्ते: परं मन्दिरम्। मिथ्यात्वप्रतिपक्षमक्षयसुखं, संशीति विध्वंसनम्।। सर्वप्राणिहितं प्रभेन्दुभवनं, सिद्धिप्रमालक्षणम्। सन्तश्चेतसि चिन्तयन्तु सुधिय:, श्रीवर्धमानं जिनम्।।१।। शान्ति: कुंथ्वरनाथशक्रमहिता:, सर्वै: गुणैरन्विता:। ते सर्वे तीर्थेशचक्रिमदनै:, पदवीत्रिभि: संयुता:।। तीर्थंकरत्रयजन्ममृत्युरहिता:, सिद्धालये संस्थिता:। ते सर्वे कुर्वन्तु शान्तिमनिशं, तेभ्यो जिनेभ्यो नम:।।२।। सम्यग्दर्शनबोधवृत्तममलं, रत्नत्रयं पावनम्। मुक्तिश्रीनगराधिनाथजिनपत्युक्तोऽपवर्गप्रद:।। धर्म: सूक्तिसुधा च चैत्यमखिलं, चैत्यालयं श्र्यालयं। प्रोक्तं च त्रिविधं चतुर्विधममी, कुर्वन्तु ते मंगलम्।।३।। ।।इति…
समयसार मण्डल विधान 01.समुच्चय पूजन 02. जीवाधिकार एवं अजीवाधिकार पूजन 03. कर्ता-कर्म अधिकार एवं पुण्य-पाप अधिकार पूजा 04. आस्रव-संवर-निर्जरा-बंध अधिकार पूजा 05. मोक्ष अधिकार एवं सर्वविशुद्धज्ञान अधिकार पूजा 06. आचार्य श्री कुन्दकुन्द स्वामी की पूजन] 07. बड़ी जयमाला
बड़ी जयमाला तर्ज-चाँद मेरे आ जा रे……. अर्घ्य का थाल सजाया है-२, समयसार की जयमाल का…
(पूजा नं.-6) आचार्य श्री कुन्दकुन्द स्वामी की पूजन (तर्ज-माता तू दया करके……..) गुरुवर तेरी पूजा ही, मुझे पूज्य बनाएगी। तेरी सौम्य सहज मुद्रा, मेरे मन में समाएगी।। हे कुन्दकुन्द स्वामी, तव…