सेठ सुदर्शन की कथा
सेठ सुदर्शन की कथा (आर्यिका चंदनामति माताजी द्वारा)
सुरक्षित आश्रय भन का स्वभाव है कि किसी विशेष वस्तु का थोड़े समय तक आनंद लेने के पश्चात वह दूसरी वस्तु की ओर मुड़ना चाहता है। जबकि सत्य यही है कि संसार में जो चीजें आई हैं, उनका अंत सुनिश्चित है। इसलिए किसी वस्तु का आप आनंद हमेशा नहीं उठा पाएंगे। लोग इस बात को…
सुख और आनंद सुख और आनंद एक-दूसरे के पांव के रूप में प्रयोग किए जाते हैं, हैं, परंतु परंतु आध्यात्मिक दृष्टि से अगर विचार करें तो दोनों में बड़ा अंतर है। जी भी सामग्री या पदार्थ इंद्रियों को अच्छा लगता है या हमारी इंद्रियों के अनुकूल होता है उसे सुख कहा जाता है। सुख सदैव…
आलस्य किसी भी व्यक्ति की प्रगति में दूसरे लोग तो कम बाधक होते हैं खुद अपनों प्रगति में व्यक्ति स्व ज्यादा बाधक होता है। इसमें सबसे बड़ा कारण आलस्य होता है, जिसके चलते असफल होने पर लोग अपने भाग्य को कोसते हैं। ज्यादातर असफल लोगों को देखा जाए तो यही बात सामने आती है कि…
तप से तृप्ति आज की तेज रफ्तार जिंदगी मनुष्य को अशांति, असंतुलन, तनाव, थकान तथा चिड़चिड़ाहट की ओर धकेल रही है, जिससे अस्त-व्यस्तता बढ़ रही है। ऐसी विषमता एवं विसंगतिपूर्ण जिंदगी को स्वस्थ तथा ऊर्जावान बनाए रखने के लिए संयम एवं तप एक रामबाण दवा है। यह मस्तिष्क को शांत, शरीर को स्वस्थ एवं जीवन-आकांक्षाओं…
जीवन संघर्ष जीवन का संघर्ष ही व्यक्ति को निखारता है, उसकी जीवनी शक्ति को प्रखर करता है। जिस तरह लोहे को भट्टी में तपाकर उसे शक्तिशाली बनाया जाता है ठीक उसी तरह जीवन में आने वाली चुनौतियां व्यक्ति की सामर्थ्य को सबलता प्रदान करती हैं। जो संघर्ष को आभूषण मानकर उसे अंगीकार करते हैं, वही…
एकत्व की साधना जिस एकता को हम बात करते हैं, क्या उसके पथ पर चला जा सकता है। एकत्व वस्तुतः शब्द नहीं, जीवन पद्धति है। जिस मनुष्य की आंतरिक संरचना कुछ ऐसी हो जाए कि बाह्य कुछ भी प्रभाव कुप्रभाव उसे विचलित न करें, किसी भी प्रकार की कठिनाई या दुविधा उसे न सताए, चारों…
एकांत से उन्नति सामाजिक होने का अर्थ भीड़ का हिस्सा होना नहीं है। कोई व्यक्ति एकांत में रहना पसंद करता है, तो इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि वह असामाजिक है, मिलनसार नहीं है, उसे एकांतप्रिय का विशेषण भी दिया जा सकता है। एकांत को चुन लेना कई ‘बार किसी विशेष लक्ष्य के लिए…
संवेदनशीलता जब हम पीछे मुड़कर देखते हैं तो सुख-दुख के पल हमारी आंखों के सामने घूमने लगते हैं। हमें अपने परिवार और समाज से जो कुछ मिला उससे मन प्रफुल्लित होता है, लेकिन इस आगे बढ़ने की होड़ में कहीं न कहीं हम अपने कोमल हृदय में व्याप्त संवेदनाओं को खोते जा रहे हैं। और…
ऋण-मुक्ति मनुष्य जीवन में अनेक प्रकार के ऋण होते हैं। ऋण के बिना मनुष्य जीवन सुव्यवस्थित तरीके से नहीं चल सकता है। जन्म से लेकर जीवनपर्यंत वह ऋण के बिना रह ही नहीं सकता, इसलिए ऋषियों-मनीषियों ने ऋण चुकाने का महत्व बताया है। जिस प्रकार भौतिक जीवन में किसी से आर्थिक ऋण लेने पर उसे…