20. (पूजा नं. 18) पश्चिम पुष्करार्ध पुष्करवृक्ष-शाल्मलिवृक्ष
(पूजा नं. 18) पश्चिम पुष्करार्ध पुष्करवृक्ष-शाल्मलिवृक्ष जिनमंदिर पूजा अथ स्थापना (नरेन्द्र छंद) (चाल—इह विध राज्य करे……) पश्चिम पुष्कर अर्ध द्वीप में, मध्य कनक गिरि…
(पूजा नं. 18) पश्चिम पुष्करार्ध पुष्करवृक्ष-शाल्मलिवृक्ष जिनमंदिर पूजा अथ स्थापना (नरेन्द्र छंद) (चाल—इह विध राज्य करे……) पश्चिम पुष्कर अर्ध द्वीप में, मध्य कनक गिरि…
(पूजा नं. 17) विद्युन्माली मेरु पूजा स्थापना (गीता छंद) श्री मेरु विद्युन्मालि पंचम, द्वीप पुष्कर अपर में। तीर्थंकरों का न्हवन होता, है सदा तिस उपरि में।। सोलह जिनालय हैं वहाँ, सुरवंद्य जिनप्रतिमा तहाँ। आह्वान कर पूजॅूँ सदा, मैं भक्ति श्रद्धा से यहाँ।।१।। ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपस्थविद्युन्मालिमेरुसंबंधिषोडशजिनालयजिनबिम्ब- समूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
(पूजा नं. 16) पूर्व पुष्करार्ध पर्वत जिनमंदिर पूजा अथ स्थापना (नरेन्द्र छंद) पूरब पुष्कर अर्धद्वीप में, छह कुल पर्वत सोहें। चार कहे गजदंत अकृत्रिम, सुरकिन्नर मन मोहें।। सोलह गिरि वक्षार सुवर्णिम, चौंतिस रजताचल हैं। इन पर्वत के साठ जिनालय, पूजत सुख अविचल है।। ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधिकुलाचलगजदंतवक्षारविजयार्धपर्वतस्थितषष्टि- सिद्धकूटजिनालयजिनबिम्बसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
(पूजा नं. 15) पूर्व पुष्करार्धद्वीप पुष्करवृक्ष-शाल्मलिवृक्ष जिनमंदिर पूजा स्थापना (नरेन्द्र छंद) पुष्कर तरु से अंकित पुष्कर, द्वीप जु सार्थक नामा। सुरगिरि के दक्षिण उत्तर में, भोगभूमि अभिरामा।। उत्तरकुरु ईशान कोण में, पद्मवृक्ष मन मोहे। देवकुरू नैऋत में शाल्मलि, तरु पे सुरगण सोहें।।१।। -दोहा- दोनों तरु पे जिनभवन, स्वयं सिद्ध गुणखान। जिनवर पूजन हेतु मैं, करूँ…
(पूजा नं. 14) मंदर मेरु पूजा स्थापना (नरेन्द्र छंद) पुष्करार्ध वर द्वीप पूर्व में, मंदर मेरू सोहे। उसके सोलह जिनमंदिर में, जिनप्रतिमा मन मोहे।। भक्तिभाव से आह्वानन कर, पूजा पाठ रचाऊँ। भव-भव के संताप नाश कर, स्वातम सुख को पाऊँ।।१।। ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपस्थमंदरमेरुसंबंधिषोडशजिनालयजिनबिम्बसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
(पूजा नं. 13) पुष्करार्धद्वीप इष्वाकार जिनमंदिर पूजा अथ स्थापना (नरेन्द छंद) पुष्करार्ध में दक्षिण-उत्तर, इष्वाकार गिरी हैं। कनकवर्णमय शाश्वत अनुपम, धारें अतुलसिरी हैं।। इन दोनों पे दो जिनमंदिर, पूजत पाप पलानो। आह्वानन कर जिनप्रतिमा का, विधिवत् पूजन ठानो।।१।। ॐ ह्रीं पुष्करार्धद्वीपस्थदक्षिणोत्तरसम्बन्धिइष्वाकारपर्वतसिद्धकूट- जिनालयस्थजिनबिम्बसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं पुष्करार्धद्वीपस्थदक्षिणोत्तरसम्बन्धिइष्वाकारपर्वतसिद्धकूट- जिनालयस्थजिनबिम्बसमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ:…
(पूजा नं. 12) पश्चिमधातकी खण्ड पर्वत जिनमंदिर पूजा अथ स्थापना (नरेन्द्र छंद) अपर धातकी खण्डद्वीप में, षट्कुल पर्वत सोहें। विदिशा में गजदंत चार हैं, सुर नर का मन मोहें।। सोलह गिरि वक्षार सुहाने, चौंतिस रजताचल हैं। इनके साठ जिनालय पूजूँ, पद मिलता अविचल है।। ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधिकुलाचलगजदंतवक्षारविजयार्धपर्वत- स्थितजिनालयजिनबिम्बसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
(पूजा नं. 11) पश्चिमधातकी खण्डस्थ धातकीवृक्ष-शाल्मलीवृक्ष जिनमंदिर पूजा अथ स्थापना (हरिगीतिका छंद) (चाल-सम्मेदगढ़ गिरनार……) वरद्वीप धातकि में अपरदिश, बीच सुरगिरि अचल है। ताके विदिश ईशान में, शुभ धातकी द्रुम अतुल है।। सुरगिरि के नैऋत्य शाश्वत, शाल्मली द्रुम सोहना। द्वय वृक्ष शाखा पर जिनालय, पूजहूँ मन मोहना।।१।। ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधिधातकीशाल्मलीद्वयवृक्षस्थितजिनालय- जिनबिम्बसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
(पूजा नं. 10) अचलमेरु पूजा स्थापना (गीताछंद) श्री अचलमेरु राजता है, अपर धातकि द्वीप में। सोलह जिनालय तास में, जिनबिंब हैं उन बीच में।। प्रत्यक्ष दर्शन हो नहीं, अतएव पूजूँ मैं यहाँ। आह्वान विधि करके प्रभो, थापूँ तुम्हें आवो यहाँ।।१।। ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपस्थअचलमेरुसंबंधिषोडशजिनालयजिन- बिम्बसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
(पूजा नं. 9) पूर्व धातकीखण्ड पर्वत जिनमंदिर पूजा अथ स्थापना (नरेन्द्र छंद) पूर्व धातकीखण्डद्वीप में, छह कुल पर्वत सोहें। गजदंताचल वक्षाराचल, चउ सोलह मन मोहें।। रजताचल चौंतिस इन सबके, जिनगृह साठ कहाये। आह्वानन कर पूजूँ रुचि से, परमानंद बढ़ाये।।१।। ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधिकुलाचलगजदंतवक्षारविजयार्धपर्वतस्थित- षष्टिजिनालयजिनबिम्बसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …