01. त्रिभुवन तिलक वंदनाष्टक
त्रिभुवन तिलक वंदनाष्टक -शम्भु छन्द- त्रिभुवन के जितने चैत्यालय, अकृत्रिम उनको नित वंदूँ। भव भव के संचित पाप पुंज, उन सबको इक क्षण में खंडूँ।। असुरों के चौंसठ लाख नागसुर, के चौरासी लाख कहे। वायूसुर के छ्यानवे लाख, सुपरण के बहत्तर लक्ष कहें।।१।। विद्युत् अग्नी स्तनित उदधि, दिक् द्वीपकुमार भवनवासी। इन छह में पृथक्-पृथक् जिनगृह,…