सुदर्शन मेरु जिनालय विधान
सुदर्शन मेरु जिनालय विधान 01. सुदर्शनमेरु भक्ति 02. सुदर्शन मेरु पूजा
सुदर्शन मेरु जिनालय विधान 01. सुदर्शनमेरु भक्ति 02. सुदर्शन मेरु पूजा
सुदर्शन मेरु पूजा अथ स्थापना-शंभु छंद त्रिभुवन के बीचों बीच कहा, सबसे ऊँचा मंदर पर्वत। सोलह चैत्यालय हैं इस पर, अकृत्रिम अनुपम अतिशययुत।। निज समता रस के आस्वादी, ऋषिगण जहाँ विचरण करते हैं। तीर्थंकर के अभिषव होते, उस गिरि की पूजा करते हैं।।१।। ॐ ह्रीं सुदर्शनमेरुसंबंधि-षोडशचैत्यालयस्थ-सर्वजिनबिम्बसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
श्री सुदर्शनमेरु जिनालय विधान सुदर्शनमेरु भक्ति (वसंततिलका छंद) तीर्थंकर – स्नपननीर – पवित्रजात:, तुङ्गोऽस्ति यस्त्रिभुवने निखिलाद्रितोऽपि। देवेन्द्र – दानव – नरेन्द्र – खगेन्द्रवंद्य:, तं श्रीसुदर्शनगिरिं सततं नमामि।।१।। यो भद्रसालवन – नंदन – सौमनस्यै:, भातीह पांडुकवनेन च शाश्वतोऽपि। चैत्यालयान् प्रतिवनं चतुरो विधत्ते, तं श्रीसुदर्शनगिरिं सततं नमामि।।२।। जन्माभिषेकविधये जिनबालकानाम्, वंद्या: सदा यतिवरैरपि पांडुकाद्या:। धत्ते विदिक्षु महनीयशिलाश्-चतसृ:, तं…
श्री षट्खण्डागम पूजा -स्थापना (शंभु छंद)- जिनशासन का प्राचीन ग्रंथ, षट्खंडागम माना जाता। प्रभु महावीर की दिव्यध्वनि से, है इसका सीधा नाता।। जब द्वादशांग का ज्ञान धरा पर, विस्मृत होने वाला था। तब पुष्पदंत अरु भूतबली ने, आगम यह रच डाला था।।१।। -दोहा- षट्खंडागम ग्रंथ की, पूजन करूँ महान। मन में श्रुत को धार कर,…
श्री षट्खण्डागम विधान मंगलाचरण -शेर छंद- कृतयुग के प्रथम देव, आदिनाथ को नमूँ। प्रभु वीर तक चौबीस-जिनेश्वर को भी प्रणमूँ।। माँ भारती को ज्ञानप्राप्ति हेतु मैं नमूँ। फिर तीन लोक के समस्त सूरिवर नमूँ।।१।। आचार्य श्री धरसेन जी जग में प्रसिद्ध थे। श्री पुष्पदन्त-भूतबलि उनके शिष्य थे।। गुरु की कृपा से जो हुए श्रुतज्ञान के…
ऋषभदेव समवसरण विधान 01. मंगल स्तोत्र 02. समवसरण पूजा 03. तीर्थंकर गुण पूजा 04. गणधर पूजा 05. सर्वसाधु पूजा 06. आर्यिका पूजा 07. बड़ी जयमाला
बड़ी जयमाला -दोहा- अति अद्भुत लक्ष्मी धरें, समवसरण प्रभु आप। तुम धुनि सुन भविवृन्द नित, हरें सकल संताप।।१।। -शंभु छंद- जय जय त्रिभुवनपति का वैभव, अन्तर का अनुपम गुणमय है। जो दर्श ज्ञान सुख वीर्यरूप, आनन्त्य चतुष्टय निधिमय है।। बाहर का वैभव समवसरण, जिसमें असंख्य रचना मानीं। जब गणधर भी वर्णन करते, थक जाते मनपर्यय…
पूजा नं.-5 आर्यिका पूजा —अथ स्थापना-गीता छंद— श्री ऋषभप्रभु के समवसृति में आर्यिकायें मान्य हैं। गणिनी प्रथम श्रीमात ब्राह्मी सर्व में हि प्रधान हैं।। व्रतशील गुण से मंडिता इंद्रादि से पूज्या इन्हें। आह्वान करके पूजहूँ त्रयरत्न से युक्ता तुम्हें।।१।। ॐ ह्रीं अर्हं श्रीऋषभदेवसमवसरणस्थितगणिनीब्राह्मीप्रमुखसर्वार्यिकासमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
पूजा नं.-4 सर्वसाधु पूजा —अथ स्थापना-गीता छंद— जो साधु तीर्थंकर समवसृति में सदा ही तिष्ठते। वे सात भेदों में रहें निज मुक्तिकांता प्रीति तें।। ऋषि पूर्वधर शिक्षक अवधिज्ञानी प्रभू केवलि वहां। विक्रियाधारी विपुलमतिवादी उन्हें पूजूँ यहाँ।। ॐ ह्रीं अर्हं श्रीऋषभदेवसमवसरणस्थितसर्वऋषिसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …