अथ अर्हन्त आदि पूजा
अथ अर्हन्त आदि पूजा गीता छंद अर्हंत सिद्धाचार्य पाठक, सर्व साधू पांच ये। निजनिज गुणों से युत इन्हों को, भजूँ मन वच काय से।। सम्यक्त्व दर्शन ज्ञान चारित, मुक्ति के कारण कहे। व्यवहार निश्चय से द्विधा, इनको जजें शिवपथ लहें।।१।। ॐ ह्रीं अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुतत्त्वदृष्टिज्ञानचारित्राणि! अत्र अवतरत अवतरत संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुतत्त्वदृष्टिज्ञानचारित्राणि! अत्र तिष्ठत तिष्ठत ठः…