मंगलाचरण
श्री समवसरण विधान (मंगलाचरण) -दोहा- समवसरण में राजते, तीर्थंकर भगवंत। नमूँ अनंतो बार मैं, पाऊँ सौख्य अनंत।।१।। -शंभु छंद- कैवल्य सूर्य के उगते ही, प्रभु समवसरण गगनांगण में। पृथ्वी से बीस हजार हाथ, ऊपर पहुँचे अर्हंत बनें।। सौधर्म इन्द्र की आज्ञा से, तत्क्षण ही धनपति आ करके। बस अर्धनिमिष में समवसरण, रच देता दिव की…