08. जिनागम पूजा
(पूजा नं.-8) जिनागम पूजा -स्थापना-गीताछंद- जिनदेव के मुख से खिरी, दिव्यध्वनी अनअक्षरी। गणधर ग्रहण कर द्वादशांगी, ग्रंथमय रचना करी।। उन अंग पूरब शास्त्र के ही, अंश ये सब शास्त्र हैं। उस जैनवाणी को जजूँ, जो ज्ञान अमृत सार है।।१।। ॐ ह्रीं श्रीजिनेन्द्रदेवमुखकमलविनिर्गतद्वादशांगअंगबाह्यसर्वजिनागम- समूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …