05. चारण ऋद्धि पूजा
पूजा नं.-5 चारण ऋद्धि पूजा —अथ स्थापना (गीता छंद)— सम्यक्त्ववंत महंत चारण ऋद्धिमंत मुनीश्वरा। आकाश जल थल में सदा विचरण करें ऋद्धीधरा।। उन योगियों अरु ऋद्धियों की मैं यहाँ अर्चा करूँ। आह्वानन कर थापूँ यहाँ मन में सहज श्रद्धा धरूँ।।१।। ॐ ह्रीं नवविधचारणऋद्धिसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं नवविधचारणऋद्धिसमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ:…