10.(6.1) ‘‘धर्म: सर्व सुखाकरो हितकरो, धर्मं बुधाश्चिन्वते।(सिद्ध लोक और सिद्ध शिला)
‘‘धर्म: सर्व सुखाकरो हितकरो, धर्मं बुधाश्चिन्वते। धर्मेणैव समाप्यते शिवसुखं, धर्माय तस्मै नम:।।७।।’’ ‘‘धर्मेणैव समाप्यते शिवसुखं’’ धर्म से ही मोक्ष सुख प्राप्त होता है—शिव, सिद्ध, मोक्ष और निर्वाण पर्यायवाची हैं। अमृतवर्षिणी टीका— सिद्ध लोक और सिद्ध शिला सर्वार्थसिद्धि नामक इंद्रक के ध्वज से १२ योजन मात्र ऊपर जाकर ‘ईषत्प्राग्भार’ नाम की आठवीं पृथ्वी स्थित है। तीन…