10.(3.5) धर्मद्रव्य-
धर्मद्रव्य- गति क्रियाशील जो जीव और, पुद्गल नित गमन करें जग में। इन दोनों के ही चलने में, यह धर्मद्रव्य सहकारि बने।। जैसे मछली को चलने में, जल सहकारी बन जाता है। नहिं रुकी हुई को प्रेरक हो, वैसे यह द्रव्य कहाता है।।१७।। गमन करते हुए जीव और पुद्गल को जो गति क्रिया में सहकारी…