02. महार्घ्य जयमाला
महार्घ्य जयमाला -दोहा- चिन्मय चििंच्चतामणी, चिदानंद चिद्रूप। अमल निकल परमात्मा, परमानंद स्वरूप।।१।। नमूँ नमूँ जिन सिद्ध औ, स्वयंसिद्ध जिनबिंब। पंचमेरु वंदन करूँ, हरूँ जगत दुख नद्य।।२।। -चाल—हे दीनबन्धु- जैवंत पंचमेरु ये सौ इन्द्र वंद्य हैं। जैवंत ये मुनीन्द्र वृंद से भि वंद्य है।। जैवंत जैनसद्म ये अस्सी सु संख्य हैं। जैवंत मूर्तियाँ अनंत गुण धरंत…