11.5 मिथ्यादृष्टि के ध्यानसिद्धि संभव नहीं है!
मिथ्यादृष्टि के ध्यानसिद्धि संभव नहीं है! श्री शुभचन्द्राचार्य ने ‘‘ज्ञानार्णव’’ नामक ग्रंथ में ध्यान का प्रमुखता से विचेन किया है। ज्ञान ± अर्णव: अर्थात् ज्ञान का समुद्र। कहने का तात्पर्य यह है कि ध्यान के द्वारा ही ज्ञानरूपी समुद्र में गोता लगाया जा सकता है। प्रस्तुत ग्रंथ में ध्यान का वर्णन करते—करते आचार्यश्री कहते हैं…