8 . ग्रंथों के अध्ययन-अध्यापन की शैली
(9) ग्रंथों के अध्ययन-अध्यापन की शैली गुरुनां परिपत्याहं, श्रुतं लब्ध्वा नयद्वयात्। दिशामि भव्येभ्य:, जिनशासनवृद्धये।।१०।। गुरुओं की परंपरा से श्रुतज्ञान प्राप्त करके मैंने दोनों नयनों के आश्रय से जिनशासन की उन्नति के लिए भव्यों को उपदेश दिया। अध्ययन नाम ग्रंथों को पढ़ना और उनका मनन करना तथा अध्यापन नाम शिष्यों को पढ़ाना, अभ्यास करना। किसी…