सर्वसाधु पूजा
पूजा नं0-6 सर्वसाधु पूजा -स्थापना-गीताछंद- जो नित्य मुक्तीमार्ग रत्नत्रय स्वयं साधें सही। वे साधु संसाराब्धि तर पाते स्वयं ही शिव मही।। वहं पे सदा स्वात्मैक परमानंद सुख को भोगते। उनकी करें हम अर्चना, वे भक्त मन मल धोवते।।1।। णमो लोए सव्वसाहूणं सर्वसाधुपरमेष्ठिसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्नाननं। णमो लोए सव्वसाहूणं सर्वसाधुपरमेष्ठिसमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठःठः…