दान की महिमा और मुक्तक
दान की महिमा और मुक्तक मंगलाचरण जय उसह णाहिदंसण तिहुवणणिलयेकदीव तित्थयर। जय सयलजीववच्छल णिम्मलगुणरयणणिहि णाह।।१।। ‘दा’ धातु से देने अर्थ में ‘‘दान’’ शब्द बनता है, इसकी महिमा प्रायः समस्त ग्रन्थों में बताई गयी है क्योंकि दान देने वाला प्राणी आकाश के समान स्वच्छ, निर्मल कान्ति से युक्त होता है। जैसे बादल समुद्र से वाष्प लेते—लेते…