ज्योतिष्क देवों के बिम्बों का प्रमाण
ज्योतिष्क देवों के बिम्बों का प्रमाण
सूर्य आदि के विमानों का प्रमाण सूर्य का विमान ४८/६१ योजन, चंद्र का ५६/६१ योजन, शुक्र का १ कोस ताराओं के सबसे छोटे विमान १/४ योजन मात्र का है। इन सभी विमानों की मोटाई अपने विस्तार से आधी है। चंद्र विमान के नीचे ४ प्रमाणांगुल जाकर राहु के विमान एवं सूर्य के नीचे केतु के…
ज्योतिर्लोक प्रकरण ज्योतिष्क देवों के ५ भेद हैं सूर्य, चंद्र, ग्रह, नक्षत्र और तारा। इनके विमान चमकीले होने से इन्हें ज्योतिष्क देव कहते हैं। ये सभी विमान अर्धगोलक के सदृश हैं तथा मणिमय तोरणों से अलंकृत होते हुये निरंतर देव-देवियों से एवं जिन मंदिरों से सुशोभित हैंं। अपने को जो सूर्य, चंद्र तारे आदि दिखाई…
कौन तिर्यंच कहाँ तक जन्म ले सकते हैं? पृथ्वी आदि पाँच स्थावर, विकलत्रय ये जीव कर्म भूमिज मनुष्य या तिर्यंचों में उत्पन्न होते हैं। विशेष इतना है कि अग्निकायिक, वायुकायिक जीव मरकर उसी भव से मनुष्य नहीं हो सकते हैं। असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्यंत सभी जीव भोगभूमि में नारकियों में उत्पन्न नहीं होते हैं। विशेषता यह…
सम्यक्त्व के कारण इन तिर्यंचों में कितने ही तिर्यंच उपदेश श्रवण से, कितने ही स्वभाव से, कितने ही जातिस्मरण से, प्रथमोपशम और वेदक सम्यक्त्व को ग्रहण कर लेते हैं।
तिर्यंचों की उत्पत्ति-गुणस्थान आदि का वर्णन तिर्यंचों की उत्पत्ति गर्भ और सम्मूर्च्छन जन्म से ही होती है। इनकी योनियाँ ६२ लाख प्रमाण हैं-पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, नित्य निगोद, इतर निगोद इन छहों की ७-७ लाख, वनस्पति की १० लाख, विकलत्रय की ६ लाख, पंचेन्द्रियों की ४ लाख इस प्रकार से ७²६·४२±१०±६±४·६२ लाख हैं। सभी भोग…
तिर्यंचों की आयु शुद्ध पृथ्वी की उत्कृष्ट आयु १२००० वर्ष, खर पृथ्वी की १००० वर्ष जलजीव की ७००० वर्ष, अग्निकायिक की ३ दिन, वायुकाय की ३००० वर्ष, वनस्पति की १०००० वर्ष है। दो इंद्रिय की उत्कृष्ट आयु १२ वर्ष, तीन इंद्रियों की ४९ वर्ष, चार इंद्रियों की ६ माह, पंचेन्द्रियों में सरीसृप की नौ पूर्वांग,…
तिर्यंचों की भोगभूमि-कर्मभूमि व्यवस्था पुष्कर द्वीपस्थ मानुषोत्तर पर्वत से उधर अर्ध पुष्कर द्वीप से लेकर स्वयंभूरमण द्वीपस्थ स्वयंप्रभ पर्वत के इधर-उधर असंख्यातों द्वीपों में भोगभूमि व्यवस्था है यहाँ के तिर्यंच युगलिया उत्पन्न होते हैं। एक पल्य आयु से सहित ये भोगभूमिज तिर्यंच जघन्य भोगभूमि के सुखों का अनुभव करते हैं। स्वयंप्रभ पर्वत के बाह्य अर्ध…