राक्षसों के ७ भेद
राक्षसों के ७ भेद भीम, महाभीम, विनायक, उदक, राक्षस, राक्षस-राक्षस और ब्रह्मराक्षस। इनके २ इंद्र – भीम, महाभीम। भीम की देवियाँ – पद्मा, वसुमित्रा। महाभीम की देवियाँ – रत्नाढ्या, कंचनप्रभा।
राक्षसों के ७ भेद भीम, महाभीम, विनायक, उदक, राक्षस, राक्षस-राक्षस और ब्रह्मराक्षस। इनके २ इंद्र – भीम, महाभीम। भीम की देवियाँ – पद्मा, वसुमित्रा। महाभीम की देवियाँ – रत्नाढ्या, कंचनप्रभा।
यक्षों के १२ भेद मणिभद्र, पूर्णभद्र, शैलभद्र, मनोभद्र, भद्रक, सुभद्र, सर्वभद्र, मानुष, धनपाल, स्वरूपयक्ष, यक्षोत्तम और मनोहरण ये १२ भेद यक्षों के हैं। इनमें इंद्र – मणिभद्र, पूर्णभद्र। मणिभद्र की २ देवियाँ – कुंदा, बहुपुत्रा। पूर्णभद्र की २ देवियाँ – तारा, उत्तमा।
गंधर्वजाति के देवों के १० भेद हाहा, हूहू, नारद, तुंबरू, वासव, कदम्ब, महास्वर, गीतरति, गीतरस और वङ्कामान्। इनमें इंद्र – गीतरति और गीतरस। गीतरति की दो अग्रदेवियाँ – सरस्वती, स्वरसेना। गीतरस की दो अग्रदेवियाँ – नंदिनी,प्रियदर्शना।
किन्नर के १० भेद किंपुरुष, किन्नर, हृदयंगम, रूपपाली, किन्नर-किन्नर, अनिंदित, मनोरम, किन्नरोत्तम, रतिप्रिय और ज्येष्ठ ये १० प्रकार के किन्नर जाति के देव होते हैं। इनमें से किंपुरुष और किन्नर ये २ इंद्र हैं- किन्नर के २ इंद्र – किंपुरुष और किन्नर। किंपुरुष के २ अग्रदेवियाँ – अवतंसा, केतुमती। किन्नर के २ अग्रदेवियाँ – रतिषेणा,…
व्यंतर देवों के अंतर्गत कुलों के भेदों का वर्णन इन किन्नर आदि व्यंतरों में दस, बारह आदि भेद पाये जाते हैं। इनमें दो-दो इंद्र और इंद्रों के दो-दो अग्रदेवियाँ मानी गई हैं। ये देवियाँ २-२ हजार वल्लभिकाओं से युक्त होती हैं। यथा- किन्नरों के – १० भेद किंपुरुषों के – १० भेद महोरग के –…
व्यंतर देवों के चिन्ह विशेष किन्नर किंपुरुष आदि व्यंतर देवों संबंधी तीनों प्रकार के (भवन, भवनपुर, आवास) भवनों के सामने एक-एक चैत्य वृक्ष है। यथा- किन्नरों के भवनों के सामने – अशोक वृक्ष किंपुरुषों के भवनों के सामने – चंपक वृक्ष महोरग के भवनों के सामने – नागद्रुम वृक्ष गन्धर्व के भवनों के सामने –…
व्यंतर देवों के भेद किन्नर, किम्पुरुष, महोरग, गंधर्व, यक्ष, राक्षस, भूत और पिशाच इस प्रकार से ये व्यंतर देव आठ प्रकार के होते हैं। भूतों के चौदह हजार प्रमाण और राक्षसों के १६ हजार प्रमाण भवन हैं। शेष व्यंतरों के भवन नहीं हैं।
व्यंतर देवों के भवन आदिकों का विस्तार आदि व्यंतर देवों के उत्कृष्ट भवनों का विस्तार – १२००० योजन व्यंतर देवों के उत्कृष्ट भवनों की मोटाई – ३०० योजन व्यंतर देवों के उत्कृष्ट भवनपुरों का विस्तार – ५१००००० योजन व्यंतर देवों के उत्कृष्ट भवन आवासों का विस्तार – १२२००० योजन व्यंतर देवों के जघन्य भवनों का…
व्यन्तर देवों के निवासस्थान रत्नप्रभा पृथ्वी के खरभाग में ७ प्रकार के व्यंतर देवों के निवास स्थान हैं एवं पंकप्रभा में राक्षस जाति के व्यंतरों का निवास स्थान है। इन व्यंतर देवों के भवन, भवनपुर और आवास ऐसे ३ प्रकार के भवन माने गये हैं। इनमें से रत्नप्रभा पृथ्वी में भवन, द्वीपसमुद्रों में भवनपुर और…