सुदं मे आउस्संतो!
सुदं मे आउस्संतो!….. सुदं मे आउस्संतो! सुदं मे आउस्संतो !(श्रावक धर्म-हिन्दी अनुवाद) श्री गौतम स्वामी प्रणीत प्रतिक्रमण पाठ में परिवर्तन-परिवर्धन उचित नहीं है
सुदं मे आउस्संतो!….. सुदं मे आउस्संतो! सुदं मे आउस्संतो !(श्रावक धर्म-हिन्दी अनुवाद) श्री गौतम स्वामी प्रणीत प्रतिक्रमण पाठ में परिवर्तन-परिवर्धन उचित नहीं है
श्री गौतम स्वामी प्रणीत प्रतिक्रमण पाठ में परिवर्तन-परिवर्धन उचित नहीं है (१) करोम्यहं—आजकल कुछ साधु-साध्वियां ‘‘कुर्वेऽहं’’ क्रिया को पढ़ने लगे हैं किंतु मुझे यह संशोधन नहीं जँचा है अत: मैंने यहाँ ‘‘करोम्यहं’’ ऐसा आचार्य प्रणीत प्राचीनपाठ ही सर्वत्र रखा है। सिद्धांतचक्रवर्ती श्रीवीरनंदि आचार्य ने आचारसार ग्रंथ में ‘‘करोम्यहं’’ पाठ ही लिया है। यथा-‘‘क्रियायामस्यां व्युत्सर्गं भक्तेरस्या:…
सुदं मे आउस्संतो ! (श्रावक धर्म-हिन्दी अनुवाद) श्रीगौतमस्वामी कहते हैं— ‘‘पढमं ताव सुदं मे आउस्संतो।’’ हे आयुष्मन्तों भव्यों ! मैंने प्रथम ही सुना है। क्या सुना है ? ‘‘गिहत्थधम्मं’’ गृहस्थ धर्म सुना है। किनसे सुना है ? इह खलु— ‘‘भयवदा महदिमहावीरेण’’ यहां (विपुलाचल पर्वत पर) भगवान महतिमहावीर के श्रीमुख से सुना है। ये भगवान महावीर…
जिनधर्म विधान…. 1. मंगलाचरण 2. चौबीस तीर्थंकर पूजा 3. जिनधर्म विधान पूजा 4. बड़ी जयमाला 5. प्रशस्ति 6. आरती 7. भजन
“…भजन…” -प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चन्दनामती तर्ज-हम लाए हैं तूफान से ……. दुनिया में जैनधर्म सदा से ही रहा है। प्रभु ऋषभ महावीर ने भी यही कहा है।।टेक.।। जब से है धरा आसमाँ सौन्दर्य प्रकृति का। तक से ही प्राणियों में है विश्वास धर्म का।। हर जीव के सुख का यही आधार रहा है। प्रभु ऋषभ महावीर…
“…आरती…” -आर्यिका सुदृढ़मती तर्ज-झुमका गिरा रे……. आरति करो रे, केवली प्रणीत श्री जिनधर्म की आरति करो। तीर्थंकर के श्री विहार में, धर्म चक्र चलता आगे। प्रभु प्रभाव से जीवों के, सब रोग, शोक दारिद भागे। आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, रत्नत्रयमय इस धर्म तीर्थ की आरति करो रे।।१।। श्री जिनेन्द्र का धर्म ही…
“…प्रशस्ति…” —शंभु छंद— त्रिभुवन में धर्म वही उत्तम, जो श्रेष्ठ सुखों में धरता है। सांसारिक सभी सौख्य देकर, मुक्ती पद तक पहुँचाता है।। इस रत्नत्रयमय धर्मतीर्थ के, कर्ता तीर्थंकर बनते। इनको प्रणमूँ मैं बार बार, ये सर्व आधि व्याधी हरते।।१।। श्री गौतमगणधर को प्रणमूँ, मां सरस्वती को नमन करूँ। श्री धरसेनाचार्य गुरु को, कोटि कोटि…
“…बड़ी जयमाला…” शंभु छंद जय जय श्रीपति जय लक्ष्मीपति, जय जय मुक्ती ललना पति हो। जय जय त्रिभुवन पति गणपति के, पति जय हरि हर ब्रह्मा पति हो।। कर्मों के भेत्ता हित उपदेष्टा, त्रिभुवन त्रिसमय वेत्ता हो। जय जय केवलज्ञानी भगवन् , तुम ही शिव पथ के नेता हो।।१।। जहं आप विराज रहें भगवन् !…
जिनधर्म विधान पूजा…… अथ स्थापना—गीताछंद उत्तम क्षमादी धर्म हैं , औ दया धर्म प्रधान है। वस्तू स्वभाव सु धर्म है, औ रत्नत्रय गुणखान है।। जो जीव को ले जाके धरता , सर्व उत्तम सौख्य में। वह धर्म है जिनराज भाषित, पूजहूँ तिहुँकाल मैं।।१।। —दोहा— भरतैरावत क्षेत्र में, चौथे पांचवे काल। शाश्वत रहे विदेह में, धर्म…
चौबीस तीर्थंकर पूजा….. -अथ स्थापना-शंभु छंद- पुरुदेव आदि चौबिस तीर्थंकर, धर्मतीर्थ करतार हुये। इस जम्बूद्वीप में भरतक्षेत्र के, आर्यखंड में नाथ हुये।। इन मुक्तिवधू परमेश्वर का, हम भक्ती से आह्वान करें। इनके चरणाम्बुज को जजते, भव भव दु:खों की हानि करें।। ॐ ह्रीं श्रीवृषभदेवादिचतुर्विंशतितीर्थंकरसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं श्रीवृषभदेवादिचतुर्विंशतितीर्थंकरसमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ…