बड़ी जयमाला
बड़ी जयमाला —स्रग्विणी छंद— हे प्रभो! आप सौ इन्द्र से वंद्य हैं। तीन ही लोक के ईश अभिनंद्य हैं।। पूरिये नाथ! मेरी मनोकामना। फेर होवे न संसार में आवना।।१।। चार गति में भ्रमा सौख्य का लेश ना। जन्म औ मृत्यु ये दु:ख देवें घना।।पूरिये.।।२।। नाथ! नीगोद में एक ही श्वांस में। आठ दश बार जन्मा…