आहारशुद्धि
आहारशुद्धि दिगम्बर साधु संयम की रक्षा हेतु शरीर की स्थिति के लिए दिन में एक बार छ्यालीस दोष-चौदह मल दोष और बत्तीस अंतरायों को टाल कर आगम के अनुकूल नवकोटि विशुद्ध आहार ग्रहण करते हैं। इसी को पिंडशुद्धि या आहारशुद्धि कहते हैं।
आहारशुद्धि दिगम्बर साधु संयम की रक्षा हेतु शरीर की स्थिति के लिए दिन में एक बार छ्यालीस दोष-चौदह मल दोष और बत्तीस अंतरायों को टाल कर आगम के अनुकूल नवकोटि विशुद्ध आहार ग्रहण करते हैं। इसी को पिंडशुद्धि या आहारशुद्धि कहते हैं।
अनगारधर्मामृत ग्रंथ में आहारप्रत्याख्यान की विधि अप्रतिपन्नोपवासस्य भिक्षोर्मध्याह्नकृत्यमाह— प्राणयात्राचिकीर्षायां प्रत्याख्यानमुपोषितम्। न वा निष्ठाप्य विधिवद्भुक्त्वा भूयः प्रतिष्ठयेत्१।।३६।। प्रतिष्ठयेत् प्रत्याख्यानमुपोषितं वा यथासामर्थ्यमात्मनि स्थापयेत्साधुः। कथम्? भूयः पुनः।किं कृत्त्वा ? भुक्त्वा भोजनं कृत्वा। किंवत ? विधिवत् शास्त्रोक्तविधानेन। किं कृत्वा ? निष्ठाप्य पूर्वदिने प्रतिपन्नं क्षमयित्वा विधिवदेव।किं तत् ? प्रत्याख्यानम्। न केवलम्, उपोषितं न वा उपवासं वा। कस्यां सत्याम्? प्राणयात्राचिकीर्षायां भोजन-करणेच्छायां…
आचारसार ग्रंथ में आहार प्रत्याख्यान की विधि प्रतिग्रहप्रणामाभ्यां स्थापितो योग्यदातृभिः। तर्णकैलकवालादीननुल्लंघ्य विशेद्गृहम्१।।११६।। जिस घर के योग्य दाता ने प्रतिग्रह और प्रणाम करके स्थापना किया है—ठहराया है उसके घर में भैंस के छोटे बच्चे वा किसी भेड़, बकरी के छोटे बच्चे को उल्लंघन न करते हुए प्रवेश करना चाहिए।।११६।। प्रकाशजनसंचारवत्यशुच्यङ्गिवर्जते । विस्तीर्णे संवृते शस्ते सम्मते तत्र…
गोचार प्रतिक्रमण कब और कैसेकरें? आचार्य देव की वंदना के बाद साधुवर्ग गोचार प्रतिक्रमण करें। जिनके घर में आहार हुआ है उनका नाम आदि बताकर आहार में जो कुछ अतिचार आदि लगे हों उनको कहना चाहिए। किन्हीं-किन्हीं संघ में आहार में जो कुछ ग्रहण किया है उन सब वस्तुओं को भी बतलाते हैं यह भी…
लघु आचार्यभक्ति…. श्रुतजलधिपारगेभ्यः स्वपरमतविभावनापटुमतिभ्यः। सुचरिततपोनिधिभ्यो नमो गुरुभ्यो गुणगुरुभ्यः।।१। छत्तीसगुणसमग्गे पंचविहाचारकरणसंदरिसे। सिस्साणुग्गहकुसले धम्माइरिये सदा वंदे।।२।। गुरुभत्तिसंजमेण य तरंति संसारसायरं घोरं। छिण्णंति अट्ठकम्मं, जम्मणमरणं ण पावेंति।।३।। ये नित्यं व्रतमंत्रहोमनिरता, ध्यानाग्निहोत्राकुलाः। षट्कर्माभिरतास्तपोधनधनाः साधुक्रियाः साधवः।। शीलप्रावरणा गुणप्रहरणाश्चंद्रार्क-तेजोऽधिकाः। मोक्षद्वारकपाटपाटनभटाः प्रीणंतु मां साधवः।।४।। गुरवः पांतु नो नित्यं, ज्ञानदर्शननायकाः। चारित्रार्णवगंभीरा, मोक्षमार्गोपदेशकाः।।५।। अंचलिका-इच्छामि भंत्ते! आइरियभत्तिकाओसग्गो कओ तस्सालोचेउं सम्मणाण-सम्मदंसण-सम्मचारित्तजुत्ताणं पंचविहाचाराणं आइरियाणं, आयारादि-सुदणाणोवदेसयाणं उवज्झायाणं, तिरयणगुणपालणरयाणं…
लघु योगिभक्ति प्रावृट्काले सविद्युत्प्रपतितसलिले वृक्षमूलाधिवासाः। हेमंते रात्रिमध्ये प्रतिविगतभयाः काष्ठवत्त्यक्तदेहाः।। ग्रीष्मे सूर्यांशुतप्ताः गिरिशिखरगताः स्थानकूटांतरस्थाः। ते मे धर्मं प्रदद्युर्मुनिगणवृषभा मोक्षनिःश्रेणिभूता।।१।। गिह्मे गिरिसिहरत्था वरिसायाले रुक्खमूलरयणीसु। सिसिरे बाहिर-सयणा ते साहू वंदिमो णिच्चं।।२।। गिरि – कंदर – दुर्गेषु ये वसंति दिगंबराः। पाणिपात्रपुटाहारास्ते यांति परमां गतिम् ।।३।। अंचलिका-इच्छामि भंत्ते! योगिभत्तिकाओसग्गो कओ तस्सालोचेउं अड्ढाइज्जदीवदोसमुद्देसु पण्णारसकम्मभूमिसु आदावणरुक्खमूल-अब्भोवास-ठाण-मोण-वीरासणेक्कपास-कुक्कुडासण-चउत्थ-पक्खखवणादिजोगजुत्ताणं णिच्चकालं अंचेमि पूजेमि वंदामि णमंसामि दुक्खक्खओ…
गुरु के पास प्रत्याख्यान ग्रहण विधि नमोऽस्तु प्रत्याख्यानप्रतिष्ठापनक्रियायां…..सिद्धभक्तिकायोत्सर्गं करोम्यहं। (२५ उच्छ्वास में ९ जाप्य) ‘‘तवसिद्धे णयसिद्धे’’ इत्यादि लघु सिद्धभक्ति पढ़े। नमोऽस्तु प्रत्याख्यानप्रतिष्ठापनक्रियायां…..योगिभक्तिकायोत्सर्गं करोम्यहं। (२५ उच्छ्वास में ९ जाप्य)
प्रत्याख्यान ग्रहण विधि नमोऽस्तु प्रत्याख्यानप्रतिष्ठापनक्रियायां……सिद्धभक्तिकायोत्सर्गं करोम्यहं। (२५ उच्छ्वास में ९ बार महामंत्र का जाप्य) यदि अगले दिन का उपवास लेना है तो- नमोऽस्तु उपवासप्रतिष्ठापनक्रियायां……सिद्धभक्तिकायोत्सर्गं करोम्यहं। (९ जाप्य) पुन: ‘‘तवसिद्धे णयसिद्धे’’ इत्यादि लघु सिद्धभक्ति पढ़ें। (पुनः ‘‘अरहंत सिद्ध आचार्य उपाध्याय सर्वसाधु पंचगुरु साक्षी से मेरा अगले दिन आहार ग्रहण करने तक चतुर्विध आहार का त्याग है।’’…
लघु सिद्धभक्ति तवसिद्धे णयसिद्धे संजमसिद्धे चरितसिद्धे य। णाणम्हि दंसणम्हि य सिद्धे सिरसा णमंसामि।। इच्छामि भंत्ते! सिद्धभत्तिकाओसग्गो कओ तस्सालोचेउं, सम्मणाण-सम्मदंसण-सम्मचारित्तजुत्ताणं, अठ्ठविहकम्मविप्प-मुक्काणं अट्ठगुणसंपण्णाणं, उड्ढलोयमत्थयम्मि पइट्ठियाणं, तवसिद्धाणं, णय-सिद्धाणं, संजमसिद्धाणं, चरित्तसिद्धाणं, अतीताणागदवट्टमाणकालत्तयसिद्धाणं, सव्वसिद्धाणं, णिच्चकालं, अंचेमि पूजेमि वंदामि णमंसामि दुक्खक्खओ कम्मक्खओ बोहिलाहो सुगइगमणं समाहिमरणं जिणगुणसंपत्ति होउ मज्झं। -पद्यानुवाद- तप से सिद्ध नयों से सिद्ध, सुसंयमसिद्ध चरित सिद्धा। ज्ञान सिद्ध दर्शन…
प्रत्याख्यान विसर्जन विधि (नवधाभक्ति के बाद, आहार प्रारंभ करने के पहले की विधि) नमोऽस्तु प्रत्याख्याननिष्ठापनक्रियायां……..सिद्धभक्तिकायोत्सर्गं करोम्यहं। (२५ उच्छ्वास में ९ बार जाप्य) यदि पहले दिन का उपवास था तो- नमोऽस्तु उपवासनिष्ठापनक्रियायां……सिद्धभक्तिकायोत्सर्गं करोम्यहं। (२५ उच्छ्वास में ९ बार महामंत्र का जाप्य)