जयमाला
“…जयमाला…” —त्रिभंगी छंद— जय जय श्री गणधर, धर्म धुरंधर, जिनवर दिव्यध्वनी धारें। द्वादश अंगों में, अंग बाह्य में, गूँथे ग्रन्थ रचें सारे।। गुरु नग्न दिगंबर, सर्व हितंकर, तीर्थंकर के शिष्य खरे। मैं नमूँ भक्ति धर, ऋद्धि निधीश्वर, मुझ शिवपथ निर्विघ्न करें।।१।। —स्रग्विणी छंद— मैं नमूँ मैं नमूँ नाथ गणधार को। शील संयम गुणों के सुभंडार…