श्री गणधरदेव स्तोत्र
श्री गणधरदेव स्तोत्र…. पद्यानुवाद (चौबोल छन्द) जीता अंत: शत्रूगण को, ‘‘जिन’’ कहलाए गरिष्ठ भी। देशावधि परमावधि सर्वावधि, संयुत मुनिराज सभी।। कोष्ठ बीज आदिक ऋद्धीयुत, पदानुसारी ऋद्धीयुत। सब गणधर की स्तुति करूँ मैं, उन गुणप्राप्ति हेतु संतत।।१।। जो संभिन्न श्रोतृ ऋद्धीयुत, स्वयंबुद्ध मुनिनाथ महान्। जो प्रत्येकबुद्ध संबोधित, बुद्धिसहित बहुत ऋद्धीमान्।। वे गणेश गुरुदेव विमुक्तीमार्ग, कहें साक्षात्…