श्री गौतमस्वामी प्रणीत प्रतिक्रमण पाठ में परिवर्तन-परिवर्धन अनुचित है।
श्री गौतमस्वामी प्रणीत प्रतिक्रमण पाठ में परिवर्तन-परिवर्धन अनुचित है।
श्री गौतमस्वामी प्रणीत प्रतिक्रमण पाठ में परिवर्तन-परिवर्धन अनुचित है।
श्रीगौतमस्वामी प्रणीत प्रतिक्रमण पाठ में परिवर्तन-परिवर्धन उचित नहीं है।…… (१) करोम्यहं—आजकल कुछ साधु-साध्वियां ‘‘कुर्वेऽहं’’ क्रिया को पढ़ने लगे हैं किंतु मुझे यह संशोधन नहीं जँचा है अत: मैंने यहाँ ‘‘करोम्यहं’’ ऐसा आचार्य प्रणीत प्राचीनपाठ ही सर्वत्र रखा है। सिद्धांतचक्रवर्ती श्रीवीरनंदि आचार्य ने आचारसार ग्रंथ में ‘‘करोम्यहं’’ पाठ ही लिया है। यथा-‘‘क्रियायामस्यां व्युत्सर्गं भक्तेरस्या: करोम्यहं१।’’ अनगार…
“…गाथाएँ या सूत्र अपरिवर्तनीय हैं…” कोई-कोई गाथाएँ श्री गौतम स्वामी आदि महान् गणधर देव व आचार्यों के मुखकमल से निर्गत हैं उनकी विभक्ति आदि का संशोधन नहीं करना चाहिये। जैसे कि— धम्मो मंगल मुक्किट्ठं अहिंसा संजमो तवो। देवा वि तस्स पणमंति, जस्स धम्मे सया मणो।। यह श्री गौतमस्वामी के मुख से निर्गत गाथासूत्र आज बदलकर…
श्रावक के १२ व्रत….. पढमं ताव सुदं मे आउस्संतो! इह खलु समणेण भयवदा महदि-महावीरेण महा-कस्सवेण सव्वण्ह-णाणेण सव्व-लोय-दरसिणा सावयाणं सावियाणं खुड्डयाणं खुड्डियाणं कारणेण पंचाणुव्वदाणि तिण्णि गुणव्वदाणि चत्तारि सिक्खा-वदाणि बारसविहं गिहत्थधम्मं सम्मं उवदेसियाणि। तत्थ इमाणि पंचाणुव्वदाणि पढमे अणुव्वदे थूलयडे पाणादि-वादादो वेरमणं, विदिए अणुव्वदे थूलयडे मुसावादादो वेरमणं, तदिए अणुव्वदे थूलयडे अदत्ता-दाणादो वेरमणं, चउत्थे अणुव्वदे थूलयडे सदारसंतोस-परदारा-गमणवेरमणं कस्स य…
पच्चीस भावना…… श्री गौतमगणधर स्वामी ने प्रतिक्रमण पाठ में पच्चीस भावनाओं के नाम दिए हैं— चूलियं तु पवक्खामि भावणा पंचविंसदी। पंच पंच अणुण्णादा एक्केक्कम्हि महव्वदे३।।१।। मणगुत्तो वचिगुत्तो इरिया – कायसंयदो। एसणा- समिदि – संजुत्तो पढमं वदमस्सिदो।।२।। अकोहणो अलोहो य, भय – हस्स – विवज्जिदो। अणुवीचि – भास – कुसलो, विदियं वदमस्सिदो।।३।। अदेहणं भावणं चावि, उग्गहं…
बंध के कारण बंध प्रत्यय अर्थात् बंध के कारण चार माने हैं। श्री गौतमस्वामी ने प्रतिक्रमण पाठ में अनेक बार— चउण्णं पच्चयाणं१। ‘‘चउसु पच्चएसु।।’’ टीकाकारों ने मिथ्यात्व, अविरति, कषाय और योग ऐसे नाम दिये हैं। षट्खण्डागम में तो अनेक स्थलों पर ये प्रत्यय चार ही माने हैं। षट्खण्डागम में तृतीय खण्ड का नाम ही ‘‘बंधस्वामित्व-विचय’’…
द्वादश तप (पाक्षिक प्रतिक्रमण से) तवायारो बारसविहो अब्भंतरो छव्विहो बाहिरो छव्विहो तत्थ बाहिरो अणसणं आमोदरियं वित्तिपरिसंखा रसपरिच्चाओ सरीरपरिच्चाओ विवित्तसयणासणं चेदि। तत्थ अब्भंतरो, पायच्छित्तं विणओ वेज्जावच्चं सज्झाओ झाणं विउस्सग्गो चेदि। अब्भंतरं बाहिरं बारसविहं तवोकम्मं ण कदं णिसण्णेण, पडिक्कंतं, तस्स मिच्छा मे दुक्कडं१।।३।। (प्रतिक्रमण ग्रन्थत्रयी से) ।।तत्थ।। तत्र तयोर्द्वयोर्मध्ये।। बाहिरो।। बाह्यस्तप—आचारः।। अणसणं।। अशनं भोजनं। तदभावोऽनशनमुपवासः।। आमोदरियं।। अवमोदर्यमर्धभुक्त्यादि।।…
नव पदार्थ— श्री गौतमस्वामी कथित नवपदार्थ— से अभिमद-जीवाजीव-उवलद्ध-पुण्णपाव-आसव-संवर-णिज्जर-बंधमोक्ख-महिकुसले। इसमें अभिमत जीव रु अजीव उपलब्ध पुण्य अरु पाप कहे। आस्रव संवर निर्जर व बंध अरु मोक्ष कुशल नव तत्त्व रहें।। षटखण्डागम धवला टीका पुस्तक १३ में नवपदार्थ— ‘‘जीवाजीवपुण्ण-पाव-आसव-संवर-णिज्जरा-बंध-मोक्खेहि णवहि पयत्थेहि वदिरित्तमण्णं ण किं पि अत्थि, अणुवलंभादो।’’ जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बंध और मोक्ष,…
श्री गौतमस्वामी प्रणीत प्रतिक्रमण पाठ में तथा अन्य ग्रंथों में समानता व अन्तर श्री गौतमस्वामी प्रणीत प्रतिक्रमण पाठ में जो ‘‘नव पदार्थ’’, ‘‘द्वादशतप’’, ‘‘बंध के कारण’’, ‘‘श्रावक के बारह व्रत’’ व पच्चीस भावनाएँ वर्णित हैं। इन्हीं के अनुसार षट्खण्डागम ग्रंथ व श्री कुंदकुंददेव द्वारा विरचित समयसार, प्रवचनसार, मूलाचार आदि ग्रंथों में समानता है। आगे के…
चैत्यभक्ति के विषय में उद्गार पं. श्री लालाराम जी के पूज्यवर आचार्यश्री १०८ शांतिसागर जी महाराज ने अपने मुनिसंघ सहित वीर निर्वाण संवत् २४५७ का चातुर्मास देहली नगर में किया था। उनके पुण्यमय दर्शन करने के लिए मैं भी देहली गया था।उस संघ में मुनिराज श्री १०८ श्रुतसागर जी भी हैं। इन समस्त मुनिराजों को…