‘खानदान-शुद्धि’ शब्द नहीं, सिद्धान्त है
‘खानदान-शुद्धि’ शब्द नहीं, सिद्धान्त है… -प्राचार्य नरेन्द्र प्रकाश जैन, फिरोजाबाद (उ.प्र.) कालचक्र सदैव गतिशील रहता है। जैनागम के अनुसार काल के दो विभाग हैं-अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी। प्रत्येक विभाग के छह-छह भेद हैं। अवसर्पिणी काल का पहिया सुख से दु:ख की ओर तथा उत्सर्पिणी का दु:ख से सुख की ओर घूमता है। वर्तमान में अवसर्पिणी काल…