श्री तीर्थंकर स्तवन
श्री तीर्थंकर स्तवन (माता के सोलह स्वप्न सहित) -सोरठा- जय जय श्री जिनराज, पृथ्वीतल पर आवते। बरसें रत्न अपार, सुरपति मिल उत्सव करें।।१।। -शंभु छंद- प्रभु तुम जब गर्भ बसे आके, उसके छह महीने पहले ही। सौधर्म इन्द्र की आज्ञा से, बहु रतनवृष्टि धनपति ने की।। मरकतमणि इन्द्र नीलमणि औ, वरपद्मरागमणियाँ सोहें। माता के आंगन…