भगवान पुष्पदंतनाथ-एक दृष्टि में
भगवान पुष्पदंतनाथ-एक दृष्टि में….
भगवान पुष्पदंतनाथ-एक दृष्टि में….
भगवान श्री पुष्पदंतनाथ जिनपूजा….. -अथ स्थापना (गीता छंद)- श्री पुष्पदंतनाथ जिनेन्द्र त्रिभुवन, अग्र पर तिष्ठें सदा। तीर्थेश नवमें सिद्ध हैं, शतइन्द्र पूजें सर्वदा।। चउज्ञानधारी गणपती, प्रभु आपके गुण गावते। आह्वान कर पूजें यहाँ, प्रभु भक्ति से शिर नावते।। ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदंतजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदंतजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं।…
नि:संगोऽहं जिनानां स्तोत्र….. ईर्यापथशुद्धि निःसंगोहं जिनानां सदनमनुपमं त्रिःपरीत्येत्य भक्त्या। स्थित्वा गत्वा निषद्योच्चरणपरिणतोऽन्त: शनैर्हस्तयुग्मम्।। भाले संस्थाप्य बुद्ध्या मम दुरितहरं कीर्तये शक्रवंद्यं। निंदादूरं सदाप्तं क्षयरहितममुं ज्ञानभानुं जिनेंद्रम् ।।१।। श्रीमत्पवित्रमकलंकमनंतकल्पं, स्वायंभुवं सकलमंगलमादितीर्थम्। नित्योत्सवं मणिमयं निलयं जिनानां, त्रैलोक्यभूषणमहं शरणं प्रपद्ये।।२।। श्रीमत्परमगंभीरस्याद्वादामोघलांक्षनं। जीयात्त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनम् ।।३।। श्रीमुखालोकनादेव श्रीमुखालोकनं भवेत् । आलोकनविहीनस्य तत्सुखावाप्तय: कुत:।।४।। अद्याभवत् सफलता नयनद्वयस्य, देव! त्वदीयचरणाम्बुजवीक्षणेन। अद्य त्रिलोकतिलक!…
अथ दृष्टाष्टक स्तोत्र…. (प्रात: देवदर्शन के लिए श्री जिनमंदिर को जावें। मंदिर का शिखर दिखते ही इस दृष्टाष्टक स्तोत्र को पढ़ते हुए मंदिर के पास पहुँचे अथवा मंदिर के पास पहुँचकर मंदिर की प्रदक्षिणा देते हुए दृष्टाष्टक स्तोत्र पढ़ें।) दृष्टं जिनेन्द्रभवनं भवतापहारि, भव्यात्मनां विभवसंभवभूरिहेतु:। दुग्धाब्धिफेनधवलोज्वलकूटकोटि-नद्धध्वजप्रकरराजिविराजमानम्।।१।। दृष्टं जिनेन्द्रभवनं भुवनैकलक्ष्मी-धामर्द्धिवर्द्धितमहामुनिसेव्यमानम् ।। विद्याधरामरबधूजनपुष्पदिव्य-पुष्पांजलिप्रकरशोभितभूमिभागम् ।।२।। दृष्टं जिनेन्द्रभवनं भवनादिवास-विख्यातनाकगणिकागणगीयमानम् ।।…
श्री पुष्पदंतजिन स्तोत्र शालिनी छन्द:-(११ अक्षरी) त्रैलोक्येश: पुष्पदंतो महेश:, काकंदी पू: जन्मतस्ते पवित्रा। सुग्रीवस्त्वज्जन्मदाता बभूव, देवेन्द्राद्यैस्त्वं नुत: साधुभिश्च।।१।। वातोर्मी छन्द:-(११ अक्षरी) गर्भे वास: सुनवम्यां हि कृष्णे, माता हृष्टा शुभदे फाल्गुने स्यात्। श्रेष्ठे शुक्ला प्रतिपन्मार्गशीर्षे, जन्म प्राप्तो भुवि भास्वान् त्रिलोक्या:।।२।। भ्रमरविलसित छन्द:-(११ अक्षरी) आत्माधीनं सुखमविचलितं, स्थैर्यं स्थानं भ्रमणविरहितं। सर्वै: पूज्यं सुरनरखचरै:, पादाब्जं ते मम भव सुखदं।।३।।…
श्री पुष्पदंतजिन स्तुति त्रैलोक्यपती देवेन्द्र नमित, साधूगण वंद्य सदा जिनवर। सुख आत्माधीन अचल तव है, स्थान भ्रमण विरहित सुस्थिर।। तव कीर्तिलता त्रिभुवन व्यापी, औ सिद्धि रमा तव चरणरता। तव दिव्यसुधावच भव जलधि से, तिरने को उत्तम नौका।।१।। काकंदी में सुग्रीव पिता, माता जयरामा जग पूजित। फाल्गुनवदि नवमी के दिन प्रभु, गर्भावतरण मंगल मंडित।। मगसिर शुक्ला…
श्री पुष्पदंतनाथ स्तुति: (सप्तविभक्ति सहित) श्रीपुष्पदंततीर्थेश:, भव्यपंकजभास्कर:। श्रीपुष्पदंततीर्थेशं, भक्त्या नमन्ति खेचरा:।।१।। श्रीपुष्पदंतनाथेन, धर्मतीर्थं प्रवर्तितं। श्रीपुष्पदंतनाथाय, नम: कुर्वन्ति साधव:।।२।। श्रीपुष्पदंततीर्थेशात्, क्षेमं सर्वत्र जायते। श्रीपुष्पदंतनाथस्य, विश्वस्मिन् वैरिणो न हि।।३।। श्री पुष्पदंततीर्थेशे, मतिं धृत्वा सुखी भव। श्री पुष्पदंततीर्थेश! त्वं मां रक्ष जगद्गुरो!।।४।। मृत्युंजयिपदप्राप्त्यै, केवलं त्वत्पदद्वयं। आश्रयामि स्मरामि च, संततं भक्तिभावत:।।५।।
मंगलाचरण (श्री गौतमस्वामीकृत वंदना) चउवीसाए अरहंतेसु। उड्ढमहतिरियलोए सिद्धायदणाणि णमंसामि, सिद्धणिसीहियाओ अट्ठावयपव्वदे सम्मेदे उज्जंते चंपाए पावाए…..जावो अण्णाओ कावोवि णिसीहियाओ। चौबीस तीर्थंकर भगवन्तों को नमस्कार होवे। ऊर्ध्वलोक, अधोलोक और मध्यलोक में जितने भी सिद्धायतन जिनमंदिर और जिनप्रतिमाएँ हैं व सिद्धनिषीधिका-जितनी भी पंचकल्याणक भूमि आदि तीर्थ हैं, अष्टापद-कैलाश पर्वत, सम्मेदशिखर पर्वत, गिरनार तीर्थ, चंपापुरी, पावापुरी एवं और भी…
“…श्री महावीर जयंती…” 1. वीरभक्ति 2. सुदं मे आउस्संतो! (मुनिधर्म) 3. भगवान महावीर स्वामी का परिचय एवं धर्मतीर्थ की उत्पत्ति (धवला पुस्तक ९ के आधार से) 4. भगवान महावीर स्वामी का परिचय एवं धर्मतीर्थ की उत्पत्ति (षट्खण्डागम पुस्तक ९ सिद्धान्तचिंतामणि टीका से) 5. धर्मतीर्थ की उत्पत्ति एवं भगवान महावीर स्वामी का परिचय (जयधवला पु. १…
“…प्रशस्ति…” -दोहा- शांतिनाथ तीर्थेश को, नमूँ अनन्तों बार। कुंथुनाथ अरनाथ को, नमूँ भक्ति उरधार।।१।। कुंदकुंद आम्नाय में, गच्छ सरस्वती मान्य। बलात्कारगण सिद्ध है, उनमें सूरि प्रधान।।२।। सदी बीसवीं के प्रथम, शांतिसागराचार्य। उनके पट्टाचार्य थे, वीरसागराचार्य।।३।। देकर दीक्षा आर्यिका, दिया ज्ञानमती नाम। गुरुवर कृपा प्रसाद से, सार्थ हुआ कुछ नाम।।४।। छब्बीस सौ उन्नीसवीं, वीर जयंती आज१।…