जिन स्तुति
जिन स्तुति जिन: शतेन्द्र वंद्योऽस्ति, जिनं भक्त्या श्रयाम्यहम्। जिनेन दीयते सौख्यं, जिनाय कोटिशो नम:।।१।। जिनाद् धर्मोऽभवज्जैनो, जिनस्य नाम क्षेमकृत्। जिने भक्ति: स्थिरा मे स्यात्, जिन! त्वं रक्ष रक्ष माम्।।२।।
जिन स्तुति जिन: शतेन्द्र वंद्योऽस्ति, जिनं भक्त्या श्रयाम्यहम्। जिनेन दीयते सौख्यं, जिनाय कोटिशो नम:।।१।। जिनाद् धर्मोऽभवज्जैनो, जिनस्य नाम क्षेमकृत्। जिने भक्ति: स्थिरा मे स्यात्, जिन! त्वं रक्ष रक्ष माम्।।२।।
चारित्रचूड़ामणि आचार्य श्री वीरसागर स्तुति: श्रीवीरसागराचार्य:, पट्टसूरिर्हि विश्रुत:। श्रीवीरसागराचार्यं, वंदे भक्त्या पुन: पुन:।।१।। शिष्या: सुशिक्षिता: नित्यं, वीरसागरसूरिणा। नमोऽस्तु भक्तिभावेन, वीरसागरसूरये।।२।। श्रीवीरसागराचार्यात्, ख्याता पट्टपरम्परा। श्रीवीरसागरस्यापि, गांभीर्यादिगुणा: स्थिता:।।३।। श्रीवीरसागराचार्ये, विद्वान्सोऽपि नता मुदा। श्रीवीरसागराचार्य!, कृपां कृत्वा पुनीहि माम्।।४।। सम्यग्ज्ञानमतीप्राप्त्यै, केवलं त्वत्पदद्वयम्। आश्रयामि स्मरामि च, संततं भक्तिभावत:।।५।। ॐ ह्रीं अनंतानंततीर्थंकरादि-मोक्षगामिमहापुरुष जन्मभूमि-अयोध्या शाश्वततीर्थक्षेत्राय नम:। ॐ ह्रीं श्री तीर्थंकरजन्मभूमि अयोध्या तीर्थक्षेत्राय…
चारित्रचक्रवर्ती प्रथमाचार्य श्री शांतिसागर स्तुति: श्रीशान्तिसागर: सूरि:, प्रथमाचार्य इष्यते। श्रीशान्तिसागराचार्यं, श्रयामि वृत्तलब्धये।।१।। श्रीशांतिसागरेणात्र, मुनिमार्ग: प्रदर्शित:। श्रीशान्तिसागरायाद्य, कोटिशो मे नमो नम:।।२।। श्रीशान्तिसागराचार्यात्, जाता धर्मप्रभावना। श्रीशान्तिसागरस्येह, भाक्तिका मोक्षमार्गिण:।।३।। श्रीशान्तिसागराचार्ये, समाविष्टा गुणा यते:। हे शान्तिसागराचार्य! मामुद्धर भवाब्धित:।।४।।
श्री षट्खण्डागम स्तुति: श्रीषट्खंडागमो ग्रन्थ:, ज्ञानवार्धि: सुरैर्नुत:। श्रीषट्खण्डागमं ग्रन्थं, स्तुवन्ति मुनिपुंगवा:।।१।। श्रीषट्खण्डागमेनात्र, ज्ञानदीधितय: स्फुटा:। श्रीषट्खण्डागमायास्मै, नमो मे कोटिशो मुदा।।२।। श्रीषट्खण्डागमात् सार:, पंचसंग्रहनामत:। श्रीषट्खण्डागमस्याद्य, टीकाद्वयं जगन्नुतं।।३।। श्रीषट्खण्डागमे बुद्धि-रभीक्ष्णं मे भवेद् ध्रुवं। श्रीषट्खण्डागम! त्वं मे, देहि ज्ञानं सुकेवलम्।।४।। श्रीवीरस्याब्जसंभूता, गणाधीशावतारिता। श्रीधरसेनसूरेश्च, शिष्यद्वयेन धारिता।।५।। पुष्पदंतभूतबली-मुनिभ्यां गुंफिताऽधुना। धवलाटीकया सूरि:, वीरसेनो ददौ भुवि।।६।। सिद्धान्तचिंतामणि: सा, टीका मे स्थीयतामिह। यावत्तावत् ‘ज्ञानमती’,…
श्री सरस्वती स्तुति: सरस्वती जगन्माता, जिनवक्त्राम्बुजा सती। सरस्वती-मुपासन्ते, भक्त्या सर्वे मुनीश्वरा:।।१।। सरस्वत्या भुक्तिं मुक्तिं, प्राप्नुवन्त्यपि भाक्तिका:। सरस्वत्यै नमस्तुभ्यं, नमस्तुभ्य-मनन्तश:।।२।। सरस्वत्या: बुधा: भेद-ज्ञानमप्याप्नुवन्ति च। सरस्वत्या: प्रसादेन, तरन्ति भवसागरम्।।३।। सरस्वत्यां मतिं धृत्वाऽ-हर्निशं स्वात्मचिन्तनम्। सरस्वति! प्रसीद त्वं, मामनुगृह्य पालय।।४।।
श्री गौतमस्वामी स्तुति: श्री गौतम: पिता लोके, इंद्रभूतिश्च नामभाक्। श्रीगौतमं नुता: सर्वे, इन्द्राद्या भक्तिभावत:।।१।। श्रीगौतमेन सज्ज्ञानं, प्राप्तं वीरस्य दर्शनात्। श्रीगौतमाय मे नित्यं, नमो जन्मप्रहाणये।।२।। श्रीगौतमात् प्रभोर्दिव्य-ध्वनिसार: सुलभ्यते। श्रीगौतमस्य सद्भक्त्या, तरिष्यामि भवांबुधिं।।३।। श्रीगौतमे द्विदशांगी, वाणी प्रस्फुरिता त्वरं। श्रीगौतमगुरो! स्वामिन्!, मां त्राहि भवक्लेशत:।।४।।
श्री आदिनाथ स्तुति: (सप्तविभक्ति समन्वित) -अनुष्टुप् छंद:- आदिनाथो जगत्स्वामी, प्रथमस्तीर्थकृन्मत:। आदिनाथमहं नित्य-माश्रयामि हितेच्छया।।१।। आदिनाथेन सृष्टि: स्यात्, षट्स्वकर्मविधायिनी। आदिनाथाय मे नित्य-मनंतशो नमो नम:।।२।। आदिनाथाद् जिनो धर्म:, गृहि-मुन्योर्द्विभेदत:। आदिनाथस्य पुत्रास्ते, शतैका हि शिवंगता:।।३।। आदिनाथे स्थिरा बुद्धि:, मे स्याद् भवान्तकारिणी। हे आदिनाथ! मां रक्ष, भवाद् भव्यांश्च सर्वदा।।४।। (२) श्री आदिनाथ स्तुति: आदिनाथो युगस्रष्टा, त्वामादिनाथमाश्रये। आदिनाथेन सृष्टि:, स्यादादिनाथाय ते…
प्रशस्ति: दिग्दिक्वाणद्विवीराब्दे१, पूर्णायामाश्विने सिते। ऋषभदेवपुराख्ये, तीर्थंकरस्तुति: कृति:।।१।। पूर्यते भक्तिभावेन, स्वात्मस्वस्थप्रदायिका। भवे भवे जिने भक्ति-र्यावत् सिद्धपदं भवेत्।।२।। सर्वोच्चप्रतिमा यावत्, पर्वतोपरि राजते। अहिंसा परमो धर्म:, ऋषभदेवशासनम्।।३।। सप्तविभक्तियुक्ता हि, रचनैषातिशायिनी।। अर्हज्ज्ञानमतीं कुर्यात्, प्रदद्यात् न: स्तुत्यं फलम्।।४।।
श्री महावीर जिनस्तुति: त्रैलोक्याधिपतिर्वीर:, महावीरोंऽतिमो जिन:। महावीरमहं भक्त्या, श्रयामि भवभीरुत:।।१।। महावीरेण सद्दृष्टि:, बभूव गौतमो गणी। महावीराय सत्प्रीत्या, नमो नमोऽस्तु संततम्।।२।। महावीरान्महान् धर्म:, अहिंसा परमो भुवि। महावीरस्य सत्कीर्ति:, विश्वऽस्मिन्ा् वर्ततेऽधुना।।३।। महावीरे गुणा: सर्वे-ऽनन्तानंता: स्वयं स्थिता:। महावीर! कृपां कृत्वा, पूर्णां ज्ञानमतीं कुरू।।४।। मृत्युंजयिपदप्राप्त्यै, केवलं त्वद्पदद्वयं। आश्रयामि स्मरामि च, संततं भक्तिभावत:।।५।।
श्री पार्श्वनाथ स्तुति: श्री पार्श्वनाथतीर्थेश, उपसर्गजयी महान्। पार्श्वनाथं नमन्तीह, भक्ता: कष्टप्रहाणये।।१।। पार्श्वनाथेन सद्भक्ता:, भवन्तीह सहिष्णव:। पार्श्वनाथाय सद्भक्त्या-ऽनन्तानंता नमोऽस्तु मे।।२।। पार्श्वनाथाद् क्षमाभावै:, भक्तोऽभूत् कमठो रिपु:। पार्श्वनाथस्य भक्त्या मे, शक्ति: सर्वंसहा सदा।।३।। पार्श्वनाथे मतिर्मे स्यात्, यावत् सिद्धिर्न मे भवेत्। भो: पार्श्वनाथ! मां रक्ष, शरण्य एक एव त्वं।।४।।