स्नानाष्टक
स्नानाष्टक -शार्दूलविक्रीडित- सन्माल्यादि यदीयसन्निधिवशादस्पृश्यतामाश्रयेद्विण्मूत्रादिभृतं रसादिघटितं बीभत्सु यत्पूति च। आत्मानं मलिनं करोत्यपि शुिंच सर्वाशुचीनामिदं संकेतैकगृहं नृणां वपुरपां स्नानात् कथं शुद्ध्यति।।१।। अर्थ —जिस शरीर के संबंधमात्र से ही उत्तम सुगंधित पुष्पों की बनी हुई माला भी स्पर्श करने योग्य नहीं रहती है और जो शरीर विष्टा-मूत्र आदिक से चौतरफा भरा हुआ है और अनेक प्रकार के रस…