ज्योतिर्वासी विमानों का स्वरूप एवं प्रमाण-माप (त्रिलोकसार ग्रंथ से)
ज्योतिर्वासी विमानों का स्वरूप एवं प्रमाण-माप (त्रिलोकसार ग्रंथ से) इदानीं ज्योतिर्विमानस्वरूपं निरूपयति— उत्ताणट्ठियगोलकदलसरिसा सव्वजोइसविमाणा। उविंर सुरनयराणि य जिणभवणजुदाणि रम्माणि।।३३६।। जब ज्योतिर्विमानों का स्वरूप-निरूपण करते हैं— गाथार्थ—सर्व ज्योतिर्विमान अर्धगोले के सदृश ऊपर को अर्थात् ऊर्ध्व- मुखरूप से स्थित हैं तथा इन विमानों के ऊपर ज्योतिषी देवों की जिनचैत्यालयों से युक्त रमणीक नगरियाँ हैं।।३३६।। विशेषार्थ—जिस प्रकार एक…