रत्नकरण्ड श्रावकाचार
रत्नकरण्ड श्रावकाचार……….. (श्रीसमन्तभद्र आचार्य विरचित).. पद्यानुवाद-गणिनी आयिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी मंगलाचरण नम: श्री वर्धमानाय, निर्धूतकलिलात्मने। सालोकानां त्रिलोकानां; यद्विद्या दर्पणायते।।१।। जिनने सब कर्म कालिमा को, धोकर निज आत्मा शुद्ध किया। कैवल्यज्ञान को विकसित कर, त्रयकालिक सर्व प्रत्यक्ष किया।। जिनके सुज्ञान में दर्पणवत्, त्रयलोक अलोक झलकते हैं। उन तीर्थंकर श्रीवर्धमान, को नमस्कार हम करते हैं।।१।। अर्थ-जिन्होंने सम्पूर्ण…