समवसरण चैत्यवृक्ष पूजा
समवसरण चैत्यवृक्ष पूजा अथ स्थापना—गीता छंद बल्लीवनी को वेढ़कर, परकोट सुंंदर स्वर्ण का। चउ गोपुरों से युक्त उससे, बाद चौथी भूमि का।। उपवन धरा के चार दिश में, चैत्यद्रुम अति सोहने। उनके जिनेश्वर बिंब को, हम पूजते मन मोहने।।१।। ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरसमवसरणस्थित-उपवनभूमिचतुर्दिक्चैत्यवृक्ष-संबंधिसर्वजिनबिम्बसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरसमवसरणस्थित-उपवनभूमिचतुर्दिक्चैत्यवृक्ष-संबंधिसर्वजिनबिम्बसमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:…