कुन्दकुन्द स्वामी की वन्दना
कुन्दकुन्द स्वामी की वन्दना श्रीकुन्दकुन्दयोगीन्द्रं, नौमि भक्त्या विधा मुदा। मन:कुंदप्रसूनं मे, तत्क्षणं प्रस्फुटीभवेत्।।१।।
कुन्दकुन्द स्वामी की वन्दना श्रीकुन्दकुन्दयोगीन्द्रं, नौमि भक्त्या विधा मुदा। मन:कुंदप्रसूनं मे, तत्क्षणं प्रस्फुटीभवेत्।।१।।
श्री गौतमस्वामी स्तुति: (सप्तविभक्ति समन्वित) श्री गौतम: पिता लोके, इंद्रभूतिश्च नामभाक्। श्रीगौतमं नुता: सर्वे, इन्द्राद्या भक्तिभावत:।।१।। श्रीगौतमेन सज्ज्ञानं, प्राप्तं वीरस्य दर्शनात्। श्रीगौतमाय मे नित्यं, नमो जन्मप्रहाणये।।२।। श्रीगौतमात् प्रभोर्दिव्य-ध्वनिसार: सुलभ्यते। श्रीगौतमस्य सद्भक्त्या, तरिष्यामि भवांबुधिं।।३।। श्रीगौतमे द्विदशांगी, वाणी प्रस्फुरिता त्वरं। श्रीगौतमगुरो! स्वामिन्!, मां त्राहि भवक्लेशत:।।४।।
केवलज्ञान लक्ष्मी माता की वंदना केवलज्ञानरूपा या, लक्ष्मी: हस्तांबुजांबिका। तस्यै नमोऽस्तु मे नित्यं, ज्ञानज्योति: प्रयच्छ मे।।१।।
श्री सरस्वती स्तुति: (सप्तविभक्ति समन्वित) सरस्वती जगन्माता, जिनवक्त्राम्बुजा सती। सरस्वती-मुपासन्ते, भक्त्या सर्वे मुनीश्वरा:।।१।। सरस्वत्या भुक्तिं मुक्तिं, प्राप्नुवन्त्यपि भाक्तिका:। सरस्वत्यै नमस्तुभ्यं, नमस्तुभ्य-मनन्तश:।।२।। सरस्वत्या: बुधा: भेद-ज्ञानमप्याप्नुवन्ति च। सरस्वत्या: प्रसादेन, तरन्ति भवसागरम्।।३।। सरस्वत्यां मतिं धृत्वाऽ-हर्निशं स्वात्मचिन्तनम्। सरस्वति! प्रसीद त्वं, मामनुगृह्य पालय।।४।।
श्री तीस चौबीसी नामावली स्तुति -शंभु छंद- सिद्धी को प्राप्त हुए होते, होवेंगे भरतैरावत में। ये भूत भवद् भावी जिनवर, मेरे भी रक्षक हों जग में।। इस मध्यलोक के मध्य प्रथित, वर जम्बूद्वीप प्रमुख जानो। उसके दक्षिण में भरत तथा, उत्तर में ऐरावत मानो।।१।। पूरब औ अपर धातकी खंड, द्वीप में दक्षिण उत्तर में। दो…
तीस चौबीसी स्तुति सििंद्ध प्राप्ताश्च प्राप्स्यंति, भूता सन्तश्च भाविन:। भरतैरावतोद्भूतास्तीर्थंकरा अवंतु मां।।१।। जंबूद्वीपेऽत्र विख्याते, मध्यलोकस्य मध्यगे। भरतो दक्षिणे भागे, उदीच्यैरावतो मत:।।२।। पूर्वस्मिन् धातकीद्वीपेऽपरधात्र्यामपि त्विमौ। भरतैरावतौ द्वौ द्वौ, दक्षिणोत्तर भागिनौ।।३।। पूर्वार्धपुष्करेप्येवं, पश्चिमार्धे तथेदृशौ। भरतैरावते क्षेत्रे, अपागुदग्दिशोश्च ते।।४।। पंच भरतक्षेत्राणि, पंचैवैरावतान्यपि। दशैषामार्यखंडेषु, षट्कालपरिवर्तनं।।५।। चतुर्थेऽप्यागते काले चतुा\वशतयो जिना:। तीर्थेश्वरा: भवंतीह, धर्मतीर्थप्रवर्तका:।।६।। भूतकाले भवा एते, वर्तमानेऽप्यनागते। भवंति च भविष्यंति,…
त्रैलोक्य वंदनाष्टक (चैत्यवंदनाष्टक) त्रिभुवन के जितने चैत्यालय, अकृत्रिम उनको नित वंदूँ। भव भव के संचित पाप पुंज, उन सबको इक क्षण में खंडूँ।। असुरों के चौंसठ लाख नागसुर, के चौरासी लाख कहे। वायूसुर के छ्यानवे लाख, सुपरण के बहत्तर लक्ष कहें।।१।। विद्युत् अग्नी स्तनित उदधि, दिक् द्वीपकुमार भवनवासी। इन छह में पृथक्-पृथक् जिनगृह, छीयत्तर लक्ष…
ऋषभदेव-भरत-बाहुबली स्तुति (हिन्दी काव्य) -शंभु छंद- जय जय आदीश्वर ऋषभदेव, पुरुदेव प्रथम तीर्थंकर हो। जय जय कर्मारिजयी जिनवर, तुम परमपिता परमेश्वर हो।। जय युगस्रष्टा असि मषि आदिक, किरिया उपदेशी जनता को। त्रय वर्ण व्यवस्था राजनीति, गृहिधर्म बताया परजा को।।१।। निज पुत्र पुत्रियों को विद्या-अध्ययन करा निष्पन्न किया। भरतेश्वर को साम्राज्य सौंप, शिवपथ मुनिधर्म प्रशस्त किया।।…
इक्ष्वाकुवंशीय सिद्धपरमेष्ठी वंदना (अविच्छिन्न परंपरागतमुक्तिपदप्राप्त १४ लाख सिद्धों की वंदना) —शंभु छंद— ऋषभेश्वर के इक्ष्वाकुवंश में, चौदह लाख प्रमित राजा। निज सुत को राज्यसौंप दीक्षा, ले सिद्ध बने शिव के राजा।। इन अविच्छिन्न सब सिद्धों को, हम मन वच तन से नमते हैं। हम भी उनके समीप पहुँचें, बस यही याचना करते हैं।।१।। १. ॐ…
श्री भरत चक्री के ९२३ मोक्ष प्राप्त पुत्रों की वंदना भरत चक्रि के विवर्द्धनादि-सुत नव सौ तेईस। दीक्षा ले शिवपथ लिया, नमूँ नमूँ नत शीश।।१।।