श्री अभिनंदनजिन स्तुति (हिन्दी काव्य)
श्री अभिनंदनजिन स्तुति (हिन्दी काव्य) निज आत्म सुखामृत सारभूत!, भय शोक मान से रहित सदा। हे वीतराग परमात्मप्रभो!, तुमको नमोऽस्तु हो मुदा सदा।। सकलज्ञ सूर्य! सुखरत्नाकर, हे सर्वलोकमणि तीर्थंकर। हे जगत्पिता भाक्तिक जन के, गुरु भव से त्राण करो जिनवर।।१।। त्रिभुवन चूड़ामणि सुखदाता, चिन्तामणि कल्पतरु तुम हो। मेरे मन में आनंद भरो, हे अभिनन्दन! भव…