ऋषभदेव के श्री भरत आदि १०१ मोक्ष प्राप्त पुत्रों की वंदना
ऋषभदेव के श्री भरत आदि १०१ मोक्ष प्राप्त पुत्रों की वंदना ऋषभदेव के पुत्र सब, भरत आदि शत एक। दीक्षा ले शिवपथ लिया, नमूँ नमूँ शिर टेक।।१।।
ऋषभदेव के श्री भरत आदि १०१ मोक्ष प्राप्त पुत्रों की वंदना ऋषभदेव के पुत्र सब, भरत आदि शत एक। दीक्षा ले शिवपथ लिया, नमूँ नमूँ शिर टेक।।१।।
श्री बाहुबलि स्वामी स्तुति: (सप्तविभक्ति समन्वित) बाहुबली चक्रजित् त्वं, जैनी दीक्षां गृहीतवान्। बाहुबलिजिनं नौमि, स्वस्य कायबलर्द्धये।।१।। बाहुबलि-जिनेनात्र, वर्षैकयोगमाश्रित:। बाहुबलिजिनायास्मै, नमोऽस्तु स्वात्मसिद्धये।।२।। बाहुबलिजिनादस्मात्, ध्यानसिद्धि: प्रजायते। बाहुबलिजिनस्येह, लोके बिम्बानि भान्त्यपि।।३।। बाहुबलिजिने भक्ति:, मे भूयात् शक्तिवर्धिनी। बाहुबलिजिन! त्वं मां, पाहि संसारवार्धित:।।४।।
श्री भरत स्वामी स्तुति: (सप्तविभक्ति समन्वित) श्रीभरतश्चक्रवर्ती, त्वं षट्खंडाधिनायक:। श्रीभरतेश्वरं नौमि, भेदविज्ञानप्राप्तये।।१।। भरतेश्वरेण दीक्षा-क्षणात् वैâवल्य-माप्तवान्। श्रीभरतेश्वराय मे, नमो नमोस्त्वनंतश:।।२।। भरतात् भारतं वर्षं, पुराणेषु प्रकीर्त्यते। भरतस्य विरक्तिस्तु, गार्हस्थ्येऽपि प्रसिद्ध्यति।।३।। श्री भरतेश्वरे भक्ति:, सदा मे स्याद् भवे भवे। भो! भरतेश! स्वामिन्! त्वं, भेदज्ञानं प्रयच्छ मे।।४।।
पंचमहापुरुष वंदना (लघु)…….. श्री ऋषभदेव श्री भरत बाहुबलि, ऋषभसेन व अनंतवीर्य। ये प्रथमतीर्थकर प्रथम चक्र-वर्ति व प्रथम कामदेव शूर।। श्री ऋषभसेन प्रथमहि गणधर व अनंतवीर्य शिव गये प्रथम। इन प्रथम पंचयुगपुरुषों को, पंचम सुज्ञानमती हेतु नमन।।१।।
प्रथम पंच महापुरुष स्तुति (हिन्दी काव्य) जय जय आदीश्वर ऋषभदेव, इस युग के प्रथम तीर्थकर हो। जय जय कर्मारिजयी जिनवर, तुम परमपिता परमेश्वर हो।। जय युगस्रष्टा असि मषि आदिक, किरिया उपदेशी जनता को। त्रय वर्ण व्यवस्था राजनीति, गृहिधर्म बताया परजा को।।१।। निज पुत्र पुत्रियों को विद्या-अध्ययन करा निष्पन्न किया।। भरतेश्वर को साम्राज्य सौंप, शिवपथ मुनिधर्म…
प्रथम पंचमहापुरुष स्तुति: -अनुष्टुप् छंद:- श्रीमान् ऋषभदेवस्त्वं, प्रथमस्तीर्थकृन्मत:। सर्वा विद्याकला युष्मद्, नमस्तुभ्यं शिवाप्तये।।१।। प्रथमश्चक्रवर्ती यो, भरतेशो भुवि श्रुत:। नमस्तस्मै सुभक्त्याहं, यस्य नाम्नेह भारतम्।।२।। प्रथम: कामदेवो यो, बाहुबली महाबली। वर्षैक: प्रतिमायोगी, बलर्द्धिप्राप्तये नम:।।३।। गणीन्द्र: प्रथमो ज्ञेय:, ऋषभसेननामभाक्। चतुर्ज्ञानर्द्धिसंपन्नो, नमस्तुभ्यं स्वसंपदे।।४।। प्रथमो मोक्षगामी योऽ-नंतवीर्य: प्रभो: सुत:। गुणानन्तर्द्धिसंप्राप्त्यै, ते नमोऽस्तु सदा मुदा।।५।। पंचमहापुरूषांस्तान्, युगादौ प्रथमान् भुवि। पंचमज्ञानमत्याप्त्यै, एषां…
समवसरण स्तुति —दोहा— चिन्मय चिंतामणि प्रभो, गुण अनंत की खान। समवसरण वैभव सकल, वह लवमात्र समान।।१।। —शंभुछंद— जय जय तीर्थंकर क्षेमंकर, तुम धर्मचक्र के कर्ता हो। जय जय अनंतदर्शन सुज्ञान, सुखवीर्य चतुष्टय भर्त्ता हो।। जय जय अनंत गुण के धारी, प्रभु तुम उपदेश सभा न्यारी। सुरपति की आज्ञा से धनपति, रचता है त्रिभुवन मनहारी।।२।। प्रभु…
तीन चौबीसी मंत्र (१) जंबूद्वीप संबंधी भरतक्षेत्र के भूतकालीन चौबीस तीर्थंकर १. ॐ ह्रीं श्री निर्वाणजिनेन्द्राय नम:। २. ॐ ह्रीं श्री सागरजिनेन्द्राय नम:। ३. ॐ ह्रीं श्री महासाधुजिनेन्द्राय नम:। ४. ॐ ह्रीं श्री विमलप्रभजिनेन्द्राय नम:। ५. ॐ ह्रीं श्री श्रीधरजिनेन्द्राय नम:। ६. ॐ ह्रीं श्री सुदत्तजिनेन्द्राय नम:। ७. ॐ ह्रीं श्री अमलप्रभजिनेन्द्राय नम:। ८. ॐ…
जम्बूद्वीप भरतक्षेत्र की त्रैकालिक तीर्थंकर स्तुति (हिन्दी काव्य) -शंभु छंद- श्रीमन् निर्वाणप्रभू सागर, औ महासाधु विमलप्रभु हैं। श्रीधर सुदत्त औ अमलप्रभू, उद्धर अंगिर सन्मति प्रभु हैं।। िंसधूजिन कुसुमांजलि शिवगण, उत्साह तथा ज्ञानेश्वर हैं। परमेश्वर विमलेश्वर यशधर, जिनकृष्ण ज्ञानमति जिनवर हैं।।१।। प्रभु शुद्धमति श्री भद्रनाथ, अतिक्रांत शांत प्रभु तीर्थंकर। इस भरतक्षेत्र में भूतकाल के, चौबिस जिनवर…
जम्बूद्वीप भरतक्षेत्र की त्रैकालिक तीर्थंकर स्तुति -अनुष्टुप् छंद- निर्वाण: सागरो देवो, महासाधुर्जिनेश्वर:। विमलप्रभश्रीधरौ, श्रीसुदत्तोऽमलप्रभ:।।१।। उद्धरोऽङ्गिरसन्मती, श्रीसिन्धु: कुसुमाञ्जलि:। शिवगणाख्य उत्साहो, ज्ञानेश: परमेश्वर:।।२।। विमलेशो यशोधर:, कृष्णो ज्ञानमतिर्जिन:। शुद्धमतिश्च श्रीभद्रोऽतिक्रान्त: शांतनामभाक्।।३।। वृषभोऽजितनामा च, संभवश्चाभिनंदन:। सुमतिश्च पद्मप्रभ:, सुपार्श्वश्चन्द्रतीर्थकृत्।।४।। सुविधि: शीतलो श्रेयान्, वासुपूज्य: सुरैर्नुत:। विमलोऽनंततीर्थेशो, धर्म: शांतिजिनेश्वर:।।५।। कुंथुनाथोऽरनाथश्च, मल्लिश्च मुनिसुव्रत:। नमिर्नेमिर्जिन: पार्श्वो, वर्धमान: पुनातु मां।।६।। महापद्म: सुरदेव:, सुपार्श्वश्च स्वयंप्रभ:। सर्वात्मभूताख्यो…