पुण्यास्रव स्तोत्र
पुण्यास्रव स्तोत्र…. -स्रग्विणी- सिद्ध की वंदना सर्व आस्रव हरे। वंद्य अर्हंत को पुण्य आस्रव भरें।। सूरि पाठक सभी साधु को वंदते। पाप आस्रव टरें दु:ख को खंडते।।१।। मैं नमूँ मैं नमूँ पंच परमेष्ठि को। रोक शोकादि मेरे सबे दूर हों।। शुद्ध सम्यक्त्व हो ज्ञान ज्योती जगे। शुद्ध चारित्र हो कर्मशत्रू भगें।।२।। जो नमें नाथ को…