ज्ञानकल्याणक स्तोत्र
ज्ञानकल्याणक स्तोत्र —चौबोल छंद— पुरिमताल१ पुर के उद्यान में, फाल्गुन वदि एकादशि के। एक हजार वर्ष तप करके, उत्तराषाढ़ नखत रहते।। वट तरुवर के अध: ‘ऋषभ’ के, केवल रवि का उदय हुआ। यह अशोक तरु बना नमूं मैं, समवसरण धनदेव किया।।१।। पौष शुक्ल ग्यारस नक्षत्र, रोहिणी कहा अपराण्ह समय। बाग सहेतुक सप्तपर्ण तरु, नीचे केवल…