सोलहकारण भावना स्तोत्र-नं. २
सोलहकारण भावना स्तोत्र-नं. २ -दोहा- सोलहकारण भावना, तीर्थंकर पद देत। इनकी भक्ती वंदना, भव भव दु:ख हर लेत।।१।। -शंभु छंद- पहली ‘‘दर्शनविशुद्धि’’ भावन, अष्टांग अष्टगुण संयुत है। शंकादि विवर्जित दृढ़श्रद्धा से, प्रभु को पूर्ण समर्पित है।। चल मलिन अगाढ़ दोष विरहित, निज आत्म तत्त्व से परिचित है। मैं इसको वंदूं भाव सहित, यह देव शास्त्र…