चौरासी लाख योनि परिभ्रमण निवारण स्तुति
चौरासी लाख योनि परिभ्रमण निवारण स्तुति (मेरी अन्तर्भावना) -आर्यिका चन्दनामती तर्ज-सन्त साधु बनके बिचरूँ………… मनुज तन से मोक्ष जाने की घड़ी कब आएगी। हे प्रभो! पर्याय मेरी कब सफल हो पाएगी।।टेक.।। जैसे सागर में रतन का एक कण गिर जावे यदि। खोजने पर भी है दुर्लभ वह भी मिल जावे यदि।। किन्तु भव सागर में…