भवनवासी देवों के भेद
भवनवासी देवों के भेद असुरकुमार, नागकुमार, सुपर्णकुमार, द्वीपकुमार, उदधिकुमार, स्तनितकुमार, विद्युत्कुमार, दिक्कुमार, अग्निकुमार और वायुकुमार, ये १० भेद हैं।
भवनवासी देवों के भेद असुरकुमार, नागकुमार, सुपर्णकुमार, द्वीपकुमार, उदधिकुमार, स्तनितकुमार, विद्युत्कुमार, दिक्कुमार, अग्निकुमार और वायुकुमार, ये १० भेद हैं।
भवनवासीदेवों का स्थान पहले रत्नप्रभा पृथ्वी के ३ भाग बताये जा चुके हैं। उसमें खरभाग और पंकभाग में उत्कृष्ट रत्नों से शोभायमान भवनवासी और व्यंतरवासियों के भवन हैं। इन दोनों भागों में से खरभाग की मोटाई १६ हजार योजन एवं पंकभाग ८४ हजार योजन प्रमाण है। १६०००±८४०००·१००००० योजन
नरक से निकलकर नारकी किन-किन पर्यायों को प्राप्त कर सकते हैं नरक से निकलकर कोई भी जीव अनंतर भव में चक्रवर्ती, बलभद्र नारायण और प्रतिनारायण नहीं हो सकता है, यह बात निश्चित है। प्रथम तीन पृथ्वियों से निकले हुए कोई जीव तीर्थंकर हो सकते हैं। चौथी पृथ्वी तक के नारकी वहां से निकलकर चरम शरीरी…
कौन-कौन से जीव किन-किन नरकों में जाने की योग्यता रखते हैं कर्मभूमि के मनुष्य और पंचेन्द्रिय तिर्यंच जीव ही इन नरकों में उत्पन्न हो सकते हैं किन्तु नारकी, देव, भोग-भूमियाँ, विकलत्रय और एकेन्द्रिय जीव नरकों में नहीं जा सकते हैं। इन नरकों से निकले हुए जीव भी वापस नरक में उसी भव से नहीं जा…
नरक में नारकियों के जन्म लेने के अंतर का वर्णन इन नरकों में यदि कोई भी नारकी कुछ समय तक जन्म न लेवे तथा वहाँ नारकियों के उत्पन्न होने में व्यवधान पड़ जावे उसका नाम अंतर है। वह अंतर प्रथम नरक में अधिक से अधिक २४ मुहूर्त का है। ऐसे ही सभी का अंतर दिखाते…
नारकियों की आयु दु:खों से घबड़ाकर नारकी जीव मरना चाहते हैं किन्तु आयु पूरी हुये बिना मर नहीं सकते हैं। उनके शरीर तिल के समान खंड-खंड होकर भी पारे के समान पुन: मिल जाते हैं। इन नारकियों की जघन्य आयु कम से कम १० हजार वर्ष है एवं उत्कृष्ट आयु ३३ सागर है। १० हजार…
नारकियों की लेश्यायें सभी नारकी जीवों के परिणाम हमेशा अशुभतर ही होते हैं, एवं लेश्यायें भी अशुभतर होती हैंं। उनके शरीर भी अशुभ नाम कर्म के उदय से हुंडक संस्थान वाले वीभत्स और अत्यन्त भयंकर होते हैं। यद्यपि उनका शरीर वैक्रियक है फिर भी उसमें मल, मूत्र, पीव आदि सभी वीभत्स सामग्री रहती हैं। कदाचित्…
सातों पृथ्वियों में शरीर की उत्कृष्ट अवगाहना प्रथम पृथ्वी में – ७ धनुष ३ रत्नि ६ अंगुल ऊँचाई द्वितीय पृथ्वी में – १५ धनुष २ हाथ १२ अंगुल ऊँचाई तृतीय पृथ्वी में – ३१ धनुष १ हाथ ऊँचाई चतुर्थ पृथ्वी में – ६२ धनुष २ हाथ ऊँचाई पाँचवीं पृथ्वी में – १२५ धनुष ऊँचाई छठीं…
प्रत्येक नरक के प्रथम पटल और अंतिम पटल में शरीर की अवगाहना का प्रमाण