दशधर्म स्तोत्र
दशधर्म स्तोत्र -दोहा- दशलक्षण पीयूष की, निर्झरणीमय गंग। इसमें अवगाहन करूँ, धुले कर्ममल जंग।।१।। -गीताछंद- क्रोध के बहु निमित्त मिलते, हो न मन में कलुषता। नित अशुभ कर्मोदय निमित्त लख, पियें समरसमय सुधा।। ‘‘उत्तम क्षमा’’ यह धर्म जग में, वैर निज पर का हरे। यह पूर्ण शांती सौख्यदाता, वंदते मन खुश करे।।२।। मृदुभाव ‘‘मार्दव’’ मान…