बीसवीं शताब्दी के प्रथम आचार्य चारित्र चक्रवर्ती १०८ श्री शांतिसागर जी महाराज
बीसवीं शताब्दी के प्रथम आचार्य चारित्र चक्रवर्ती १०८ श्री शांतिसागर जी महाराज
बीसवीं शताब्दी के प्रथम आचार्य चारित्र चक्रवर्ती १०८ श्री शांतिसागर जी महाराज
आचार्य श्री शांतिसागर स्तुति -दोहा- शांतिसागराचार्यगुरु, मोक्षमार्ग के रूप। मन वच तनु से नित नमूँ, पाऊँ स्वात्म स्वरूप।।१।। -शंभु छंद- जय जय आचार्य शांतिसागर, अठबीस साधु गुण से मंडित। जय जय चारित्र चक्रवर्ती, पाठक के पच्चिस गुण अन्वित।। बीसवीं सदी के आप प्रथम, आचार्य दिगंबर हुए प्रथित। शिष्यों का संग्रह किया अनुग्रह-निग्रह गुण से भी…
आचार्य श्री शांतिसागर स्तुति -दोहा- शांतिसागराचार्य को, नमूँ नमूँ शत बार। सम्यक् चारित प्राप्त हो, मिले स्वात्मनिधि सार।।१।। -शंभु छंद- दक्षिण भारत के भोजग्राम में, धर्मनिष्ठ श्रेष्ठी प्रसिद्ध। पाटील भीमगौंडा उन भार्या-सत्यवती पतिव्रता सिद्ध।। ईस्वी सन् अठरह सौ बाहत्तर, वदि अषाढ़ षष्ठी तिथि थी। बालक ने जन्म लिया उस नाम-सातगोंडा था रखा तभी।।२।। बचपन यौवन…
श्री शांतिसागर स्तुति: -भुजंगप्रयात छंद- सुरत्नत्रयै: सद्व्रतैर्भ्राजमान:। चतु:संघनाथो गणीन्द्रो मुनीन्द्र:।। महा-मोह-मल्लैक-जेता यतीन्द्र:। स्तुवे तं सुचारित्रचक्रीशसूरिम्।।१। भवव्याधिनाशाय दिग्वस्त्रधारी। भवाब्धे: तितीर्षु: जगद्दु:खहारी।। भवातंकविच्छित्तयेहं श्रितस्वां। स्तुवे शांतिसिंधुं महाचार्यवर्यं।।२।। महाग्रंथराजं सुषट्खण्डशास्त्रं। सुत्ताम्रस्य पत्रे समुत्कीर्णमेव।। अहो! त्वत्प्रसादात् महाकार्यमेतत्। प्रजातं सुपूर्णं चिरस्थायि भूयात् ।।३।। अनेके सुशिष्या: प्रसिद्धास्तवेह। स्तुवे वीरसिंधुं महाचार्यवर्यं।। शिवािंब्ध च सूरिं गुणाब्धे: समुद्रं। मुदा पट्टसूरिं स्तुवे धर्मसिंधुम्।।४।। महासाधवोऽप्याार्यिका: क्षुल्लकाद्या:।…
चारित्रचक्रवर्ती प्रथमाचार्य श्री शांतिसागर स्तुति: (सप्तविभक्ति समन्वित) श्रीशान्तिसागर: सूरि:, प्रथमाचार्य इष्यते। श्रीशान्तिसागराचार्यं, श्रयामि वृत्तलब्धये।।१।। श्रीशांतिसागरेणात्र, मुनिमार्ग: प्रदर्शित:। श्रीशान्तिसागरायाद्य, कोटिशो मे नमो नम:।।२।। श्रीशान्तिसागराचार्यात्, जाता धर्मप्रभावना। श्रीशान्तिसागरस्येह, भाक्तिका मोक्षमार्गिण:।।३।। श्रीशान्तिसागराचार्ये, समाविष्टा गुणा यते:। हे शान्तिसागराचार्य! मामुद्धर भवाब्धित:।।४।।
जिनेन्द्र भक्ति संग्रह (भाग-१) णमोकार महामंत्र एवं चत्तारिमंगल पाठ श्री ऋषभदेव स्तुति: पंचमहागुरुभक्ति श्री पंचपरमेष्ठी स्तोत्र (बृहत् ) अर्हंत परमेष्ठी स्तोत्रा सिद्ध परमेष्ठी स्तोत्रा उपाध्याय परमेष्ठी स्तोत्रा सर्वसाधु परमेष्ठी स्तोत्रा पंचपरमेष्ठी स्तोत्र (लघु) सिद्ध परमेष्ठी स्तोत्रा आचार्य परमेष्ठी स्तोत्रा उपाध्याय परमेष्ठी स्तोत्रा सर्वसाधु परमेष्ठी स्तोत्रा प्रशस्ति सोलह कारण भावना स्तोत्र-१ सोलहकारण भावना स्तोत्र-नं. २ दशधर्म…
तीर्थंकर जन्मभूमि भक्ति: रचयित्री-गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी (अनुष्टुप् छंद) अयोध्या मंगलं कुर्या-दनन्ततीर्थकर्र्तृणाम्। शाश्वती जन्मभूमिर्या, प्रसिद्धा साधुभिर्नुता।।१।। ऋषभोऽजिततीर्थेशोऽप्यभिनंदनतीर्थकृत्। श्रीमान् सुमतिनाथश्चा-नन्तनाथजिनेश्वर:।।२।। पंचतीर्थकृतां गर्भ-जन्मकल्याणकादिषु। इन्द्रादिभि: सदा वंद्या, वंद्यते वंदयिष्यते।।३।। संप्रति कालदोषेण, शेषास्तीर्थंकराः पृथक्। संजातास्ता अपिजन्म-भूमयो मंगलं भुवि।।४।। श्रावस्ती मंगलं कुर्यात्, संभवनाथजन्मभू:। तनुतान्मे मन:शुद्धिं, भव्यानां भवहारिणी।।५।। कौशाम्बी मंगलं कुर्यात्, पद्मप्रभस्य जन्मभू:। जिनसूर्यो मनोऽब्जं मे, प्रफुल्लीकुरुतादपि।।६।। वाराणसी जगन्मान्या, मंगलं तनुतान्मम।…
जिनेन्द्र भक्ति संग्रह-प्रशस्ति —शंभु छंद— श्री शांतिनाथ श्री कुंथुनाथ, श्री अर जिनवर को नित्य नमूँ। श्री ऋषभदेव से महावीर तक, चौबिस जिनवर को प्रणमूँ।। श्री सरस्वती माँ को वंदूं, श्री गौतमगणधर को प्रणमूँ। आचार्य उपाध्याय साधु परम-गुरुओं को पुन: पुन: प्रणमूँ।।१।। श्री मूलसंघ में कुंदकुंद, आम्नाय सरस्वति गच्छ कहा। विख्यात बलात्कारगण से, गुरु परम्परा से…
श्री षट्खण्डागम स्तुति (सप्तविभक्ति समन्वित) रचयित्री-गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी श्री षट्खण्डागमोग्रन्थ: ज्ञानवार्धि: सुरैर्नुत:। श्री षट्खण्डागमं ग्रन्थं, स्तुवन्ति मुनिपुंगवा:।।१।। श्री षट्खण्डागमेनात्र, ज्ञानदीधितय: स्फुटा:। श्री षट्खण्डागमायास्मै, नमो मे कोटिशो मुदा।।२।। श्री षट्खण्डागमात् सार:, पंचसंग्रह-नामत:। श्री षट्खण्डागमस्याद्य टीकाद्वयं जगन्नुतं।।३।। श्री षट्खण्डागमे बुद्धिरभीक्ष्णं मे भवेद् ध्रुवं। श्री षट्खंडागम! त्वं मे देहि ज्ञानं सुकेवलम्।।४।। श्री वीरस्याब्जसंभूता, गणाधीशावतारिता। श्रीधरसेनसूरेश्च, शिष्यद्वयेन धारिता।।५।।…
प्रशस्ति वीर अब्द पच्चीस सौ, उन्नीस मगसिर मास। तिथि पूर्णा को पूर्ण की, प्रभु भक्ती गुण राशि।।१।। चौबीस जिनवर वंदना, महापुण्य फलदायि। गणिनी ‘ज्ञानमती’ कृती, होवे शिवपथदायि।।२।। जब तक जग में क्षेमकृत्, जिनशासन हितकार। तब तक जिनवर वंदना, हो भविजन सुखकार।।३।।