उपाध्याय परमेष्ठी स्तोत्रा
उपाध्याय परमेष्ठी स्तोत्रा -गीता छंद- जो अंग ग्यारह पूर्व चैदह, धरते निज बु(ि में। पढ़ते पढ़ाते या उन्हें, जो शास्त्रा हैं तत्काल में।। वे गुरू पाठक मोक्षपथ, दर्शक उन्हीं की वंदना। मन वचन तन से भावपूर्वक नित करूं आराध्ना।।1।। -शंभु छंद- ग्यारह अंगों में प्रथम कहा है, ‘‘आचारांग’’ साध्ुओं का। कैसे आचरण करे कैसे, बैठें…