ढाईद्वीप समवसरण स्तोत्र
ढाईद्वीप समवसरण स्तोत्र -नरेन्द्र छंद- कर्मभूमि के आर्यखण्ड में, तीर्थंकर विहरे हैं। समवसरण के मध्य राजतें, भविजन पाप हरे हैं।। देश विदेहों में तीर्थंकर, समवसरण नित रहता। भरतैरावत में चौथे ही, काल में यह दिख सकता।।१।। -दोहा- जिनवर समवसरण यही, धर्म सभा की भूमि। शीश नमाकर मैं नमूँ, मिले आठवीं भूमि।।२।। (शेर छंद) चाल-हे दीनबंधु…………