प्रशस्ति
प्रशस्ति…. -शंभु छंद- चौबीस तीर्थंकर को वंदूँ, माँ सरस्वती को नमन करूँ। गणधर गुरु के सब साधू के, श्री चरणों में नित शीश धरूँ।। इस युग में कुंदकुंदसूरी, का अन्वय जगत् प्रसिद्ध हुआ। इसमें सरस्वती गच्छ बलात्कारगण अतिशायि समृद्ध हुआ।।१।। इस परम्परा में साधु मार्ग, उद्धारक दिग्अंबर धारी। आचार्य शांतिसागर चारित्र-चक्रवर्ती पद के धारी।। इन…