जिनधर्म विधान
जिनधर्म विधान…. 1. मंगलाचरण 2. चौबीस तीर्थंकर पूजा 3. जिनधर्म विधान पूजा 4. बड़ी जयमाला 5. प्रशस्ति 6. आरती 7. भजन
जिनधर्म विधान…. 1. मंगलाचरण 2. चौबीस तीर्थंकर पूजा 3. जिनधर्म विधान पूजा 4. बड़ी जयमाला 5. प्रशस्ति 6. आरती 7. भजन
“…भजन…” -प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चन्दनामती तर्ज-हम लाए हैं तूफान से ……. दुनिया में जैनधर्म सदा से ही रहा है। प्रभु ऋषभ महावीर ने भी यही कहा है।।टेक.।। जब से है धरा आसमाँ सौन्दर्य प्रकृति का। तक से ही प्राणियों में है विश्वास धर्म का।। हर जीव के सुख का यही आधार रहा है। प्रभु ऋषभ महावीर…
“…आरती…” -आर्यिका सुदृढ़मती तर्ज-झुमका गिरा रे……. आरति करो रे, केवली प्रणीत श्री जिनधर्म की आरति करो। तीर्थंकर के श्री विहार में, धर्म चक्र चलता आगे। प्रभु प्रभाव से जीवों के, सब रोग, शोक दारिद भागे। आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, रत्नत्रयमय इस धर्म तीर्थ की आरति करो रे।।१।। श्री जिनेन्द्र का धर्म ही…
“…प्रशस्ति…” —शंभु छंद— त्रिभुवन में धर्म वही उत्तम, जो श्रेष्ठ सुखों में धरता है। सांसारिक सभी सौख्य देकर, मुक्ती पद तक पहुँचाता है।। इस रत्नत्रयमय धर्मतीर्थ के, कर्ता तीर्थंकर बनते। इनको प्रणमूँ मैं बार बार, ये सर्व आधि व्याधी हरते।।१।। श्री गौतमगणधर को प्रणमूँ, मां सरस्वती को नमन करूँ। श्री धरसेनाचार्य गुरु को, कोटि कोटि…
“…बड़ी जयमाला…” शंभु छंद जय जय श्रीपति जय लक्ष्मीपति, जय जय मुक्ती ललना पति हो। जय जय त्रिभुवन पति गणपति के, पति जय हरि हर ब्रह्मा पति हो।। कर्मों के भेत्ता हित उपदेष्टा, त्रिभुवन त्रिसमय वेत्ता हो। जय जय केवलज्ञानी भगवन् , तुम ही शिव पथ के नेता हो।।१।। जहं आप विराज रहें भगवन् !…
जिनधर्म विधान पूजा…… अथ स्थापना—गीताछंद उत्तम क्षमादी धर्म हैं , औ दया धर्म प्रधान है। वस्तू स्वभाव सु धर्म है, औ रत्नत्रय गुणखान है।। जो जीव को ले जाके धरता , सर्व उत्तम सौख्य में। वह धर्म है जिनराज भाषित, पूजहूँ तिहुँकाल मैं।।१।। —दोहा— भरतैरावत क्षेत्र में, चौथे पांचवे काल। शाश्वत रहे विदेह में, धर्म…
चौबीस तीर्थंकर पूजा….. -अथ स्थापना-शंभु छंद- पुरुदेव आदि चौबिस तीर्थंकर, धर्मतीर्थ करतार हुये। इस जम्बूद्वीप में भरतक्षेत्र के, आर्यखंड में नाथ हुये।। इन मुक्तिवधू परमेश्वर का, हम भक्ती से आह्वान करें। इनके चरणाम्बुज को जजते, भव भव दु:खों की हानि करें।। ॐ ह्रीं श्रीवृषभदेवादिचतुर्विंशतितीर्थंकरसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं श्रीवृषभदेवादिचतुर्विंशतितीर्थंकरसमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ…
मंगलाचरण…. अर्हन्तो मंगलं कुर्यु:, सिद्धा:, कुर्युश्च मंगलम्। आचार्या: पाठकाश्चापि, साधवो मम मंगलम्।।१।। क्षान्त्यार्जवादिगुणगण—सुसाधनं सकललोकहितहेतुम्। शुभधामनि धातारं, वन्दे धर्मं जिनेन्द्रोक्तम्।।२।। धर्म: सर्वसुखाकरो हितकरो, धर्मं बुधाश्चिन्वते। धर्मेणैव समाप्यते शिवसुखं, धर्माय तस्मै नम:। धर्मान्नास्त्यपर: सुहृद्भवभृतां, धर्मस्य मूलं दया। धर्मे चित्तमहं दधे प्रतिदिनं, हे धर्म ! मां पालय।।३।। —आर्या—छंद— चारित्रं सर्वजिनैश्चरितं, प्रोक्तं च सर्वशिष्येभ्य:। प्रणमामि पंचभेदं, पंचमचारित्रलाभाय।।४।। धम्मो मंगलमुक्किट्ठं,…
श्री सुपार्श्वनाथ विधान…. 1. मंगलाचरण 2. श्री सुपार्श्वनाथ स्तोत्र (पद्यानुवाद सहित) 3. श्री सुपार्श्वनाथ स्तुति 4. अर्हंत पूजा 5. तीर्थंकर श्री सुपार्श्वनाथ जिनपूजा 6. पंचकल्याणक अर्घ्य 7. अथ १०८ अर्घ्य १२ (१) प्रथम वलय में २७ अर्घ्य (२) द्वितीय वलय में २७ अर्घ्य (३) तृतीय वलय में २७ अर्घ्य (४) चतुर्थ वलय में २७ अर्घ्य…
भजन……. रचयित्री—प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चंदनामती तर्ज—फूलों सा चेहरा तेरा…… शाश्वत है तीरथ मेरा, सम्मेदगिरि नाम है। गिरिवरों में श्रेष्ठ है, आदि सिद्धक्षेत्र है, मधुवन परम धाम है।। टेक.।। कहते हैं इस गिरि की वन्दना से, तिर्यंच नरकायु मिलती नहीं है। श्रद्धा सहित इसकी अर्चना से, भव्यत्व कलिका खिलती रही है।। रात अंधेरी हो, भक्ति सहेली हो,…